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हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि
अपभ्रंशमे स्वयम्भूके 'रिट्ठणे मिचरिउ' को विशेष ख्याति है । उसके अन्तः और बाह्य दोनों पक्ष समान रूपसे सुन्दर है जैसे गुलाबोंकी सुगन्ध और सुषमा ही हो । स्वयम्भूकी काव्यक्षमताको महापण्डित राहुल सांकृत्यायनने परखा और मापा था । पुष्पदन्तके महापुराणमे भी कृष्ण और नेमीश्वरकी कथा निबद्ध है । आगे अनेक कवि उनसे प्रभावित से मालूम पड़ते है । अपभ्रंशके महाकवि धवलका हरिवंशपुराण ( ११वीं शताब्दी ) में भी इस विषयका महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसमें १२२ सन्धियाँ व १८ सहस्र पद्य है । हेमचन्द्रके 'त्रिशष्टि शलाका पुरुषचरित' मे कृष्णचरितका वर्णन है। हेमचन्द्राचार्यके इस ग्रन्थकी विशेष प्रतिष्ठा हुई । किन्तु यह स्वीकार करना होगा कि उनके सभी काव्य-ग्रन्थोंमें हृदयकी धड़कनें विद्वत्ताके साये में सिमटी पड़ी है । एक प्रखर वैयाकरण और दार्शनिक थे । उनकी यह प्रवृत्ति काव्य-ग्रन्थोमे भी घुले-मिले बिना रह न सको । अतः राम और कृष्णकथाके वे स्थल जो मार्मिक थे, वहाँ उपलब्ध नहीं होते ।
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संस्कृत ग्रन्थोंमें आचार्य जिनसेनका 'हरिवंशपुराण' और गुणभद्रका 'उत्तरपुराण' प्रथम कृतियाँ है, जिनमें कृष्ण-कथा आद्योपान्त उपलब्ध होती है | महाकवि धनंजयका संस्कृत 'द्विसन्धान महाकाव्य' साहित्यकी एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है । इसे 'राघव पाण्डवीय महाकाव्य' भी कहते है । इसके प्रत्येक पद्यके दो अर्थ निकलते है : एक अर्थ रामकथाके पक्षमे और दूसरा कृष्ण कथाके । ध्वन्यालोक - के कर्ता आनन्दवर्धनने धनंजयको भूरि-भूरि प्रशंसा की है, "द्विसंधाने निपुणतां स तां चक्रे धनंजयः ।
यथाजात फलं तस्य सतां चक्रे धनंजयः ॥
एक पुरानी कृति है : 'चउपन्न महापुरिसचरित' । यह प्राकृत भाषामें लिखा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसके रचयिता शीलाचार्य बहुत बड़े विद्वान् और कवि थे । उनका काल ईसवी सन् ८०८ माना जाता है । इसमे कृष्णचरित निबद्ध है । प्राकृतमें रचे गये आगम ग्रन्थ और अंगोंमे भी कृष्ण कथा मिलती है । 'उत्तराध्ययन', 'कल्पसूत्र', 'दसवैकालिक' और 'प्रश्नव्याकरण' मे कृष्ण और नेमीश्वरसम्बन्धी कथाएँ बिखरी पड़ी है ।
प्रद्युम्नचरित्रोंमें भी कृष्णका उल्लेख है । प्रद्युम्न कृष्णके पुत्र थे । और कामदेव माने जाते थे । उन्हें लेकर हिन्दीमें अनेक काव्योंकी रचना हुई । उनमे सघारूका 'प्रद्युम्नचरित्र' ( १४११ ) प्रसिद्ध है । यह एक सरस कृति है, प्रबन्धकाव्यके सभी गुण मौजूद हैं। इसके अतिरिक्त कमलकेशरकी ' प्रद्युम्नचौपई ' ( सं० १६२६ ), ब्रह्मरायमल्लका 'प्रद्युम्नरासो' ( १६२८ ), ब्रह्मज्ञानसागरका