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भूमिका 'प्रद्युम्नरास' ( १७वीं शताब्दी ) तथा देवेन्द्रकीतिका 'प्रद्युम्नप्रबन्ध' भी प्रसिद्ध रचनाएँ है। ___ आचार्य जिनसेन और गुणभद्रके संस्कृत पुराणोंमे यथास्थान यह कथा निबद्ध है। किन्तु उसका पृथक् एक काव्यके रूपमें निर्माण ११वी शताब्दीके महासेनाचार्यने 'प्रद्युम्नचरित्र के नामसे किया था। सिंह अथवा सिद्धकी 'पज्जूराणकहा' अपभ्रंशकी एक प्रसिद्ध कृति है। इसका कथानक रोचक है और अवान्तर कथाओसे उसका सम्बन्ध निर्वाह' विधिवत् हुआ है। सर्वत्र कविकी भावुकता परिलक्षित होती है। महासेनके 'प्रद्युम्नचरित्र'से यह उत्तम है। इन दोनो रचनाओंका हिन्दीके प्रद्युम्नचरित्रोंपर प्रभाव है।
हिन्दी पद्य और गद्यमे लिखे कतिपय 'हरिवंशपुराण' भी उपलब्ध होते हैं । उनमे न मौलिकता है और न काव्यसौष्ठव । वे संस्कृत और अपभ्रंश कृतियोके अनुवाद-भर है । ब्रह्मजिनदासका 'हरिवंशपुराण' १६वीं शताब्दी, शालिवाहनका 'हरिवंशपुराण' १७वी शताब्दी,खुशालचन्द कालाका 'हरिवंशपुराण' १८वीं शताब्दी
और पं० दौलतरामका 'हरिवंशपुराण' १८वीं शतीकी रचनाएँ है । इनमे पं० दौलतरामका 'हरिवंशपुराण' हिन्दी गद्यमे होनेके कारण अधिक प्रचलित है।
मध्यकालीन हिन्दी काव्यका जैन भक्तिपरक पहल विविध प्रवृत्तियोको लेकर चला । उनका विवेचन इस ग्रन्थके पहले अध्यायमे किया गया है। जैन कवियोंकी एक ऐसी प्रवृत्ति भी थी जो अधिकांश उन्हींमे पायी जाती है, वह है 'वेलिकाव्य'का निर्माण । 'वेलि' 'वल्ली'को कहते है। वल्ली वृक्षांगवाची है। पहले यह प्रचलन था कि वाङ्मयको उद्यान और उसके अन्तर्गत ग्रन्थोंको वृक्ष या उसके अंगोके नामोंसे पुकारा जाता था। 'तैत्तिरीय उपनिषद्'के सातवें प्रपाठकको 'शिक्षावल्ली' कहा गया है। विकासोन्मुख क्रममे 'वल्ली' नामसे पृथक् रचनाएँ रची जाने लगीं। ये राजस्थानी और हिन्दीमें 'वेलि' नामसे प्रसिद्ध हुई। अभीतक एक प्रसिद्ध 'वेलि' 'कृष्ण-रुक्मणी री वेलि' के नामसे प्रकाशित हो चुकी है। उसके आधारपर विद्वानोंने यह धारणा बनायी कि वेलि-काव्य श्रृंगार-परक होता है। किन्तु अधिकांश, 'वेलियों के पढ़नेसे ऐसा विदित होता है कि उनमे शृंगारसे कही अधिक भक्ति और वीर रसोंका परिपाक हुआ है। चारणोंके द्वारा गायी गयी वेलियोंमे वीरोका यशगान ही रहता है। आज भी वे त्योहारोंके अवसरपर गायी जाती है । जैन वेलियोमे विशेषता है कि वे छोटे-छोटे कथानकोंको लेकर चली है। उनमे कथा है और भक्ति भी। उनमें खण्ड-काव्यका आनन्द है, तो भक्तिको भाव-विभोरता भी। इन्हीं वेलियोंके माध्यमसे जैन कवियोंने अपने