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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य
और माताका नाम 'चम्पा' था। उनकी माता अनेक गुणोंसे सम्पन्न थीं और व्रतादिक कार्य करती ही रहती थी। वे जिनेन्द्रकी भक्त थीं और इसी कारण उनके पुत्र रायमल्ल भी व्रती और 'जिनपादकंजमधुप' बन सके थे। माताका प्रभाव पुत्रपर पड़ता है । ब्रह्म रायमल्लके गुरुका नाम मुनि अनन्तकीत्ति था। वे मूलसंघ शारदगच्छके आचार्य रत्नकोत्ति के पट्टपर अवस्थित थे।
ब्रह्म रायमल्लके रचे हुए सात हिन्दी काव्य उपलब्ध हुए है। इनमें 'नेमीश्वररास' वि० सं० १६१५, मे, 'हनुवन्त कथा' वि० सं० १६१६ मे, 'प्रद्युम्नचरित्र' सं० १६२८ मे, 'सुदर्शनरास' सं० १६२९ मे, 'श्रीपालरास' सं० १६३० में और 'भविष्यदत्त कथा' सं० १६३३ मे रची गयो। 'निर्दोषसप्तमी व्रतकथा' भी इन्हींकी कृति है। उसपर रचना-संवत् नहीं है। इनकी भाषामे गुजरातीका पुट है। अपभ्रंशके शब्दोंका भी प्रयोग हुआ है। नेमीश्वर रास
यह रास भगवान् नेमीश्वरकी भक्तिमें बना है। उसमें भगवान् नेमिनाथ तथा राजुलकी कथाका आश्रय लिया गया है। कथानकके रुचिकर होते हुए भी काव्य साधारण कोटिका है। हनुवन्त कथा
जैनोंकी प्राचीन कथाओंके अनुसार हनुमान् अंजना-पुत्र थे। अंजना भगवान जिनेन्द्रकी परम भक्त थी। पुत्र भी तदनुरूप ही बना। जैनोंके बलभद्र रामकी भक्ति कर वे अमर हो गये। आराध्यके भक्तोंकी भी भक्ति होती रही है। हनुमान्की भक्तिमे भी अनेक काव्य और रासादिकोंका निर्माण हुआ है। 'हनुवन्त कथा' भी उसी परम्पराका एक काव्य है। __पवनंजै राय, हनुमान्के पिता थे। उनके यहां भगवान् जिनेन्द्रके पूजनकी तैयारियां हो रही है । कुमकुम और चन्दन घिस लिया गया है, उसमे कपूर मिला दिया है। केतकीके पुष्प मंगवा लिये है, उनमें से सुगन्धि निकल रही है। पवनंजने पूजनकी थाली भगवान् जिनेन्द्रके चरणोंमें समर्पित की। उन्हे विश्वास है कि ऐसा करनेसे आत्मा शुद्ध होगी और एक दिन मोक्ष भी मिल जायेगा,
१. जैन ग्रन्थप्रशस्तिसंग्रह, प्रथम भाग, दिल्ली, पृ० १०० । २. इसकी एक हस्तलिखित प्रति, सेठ कूँचाके मन्दिर, दिल्लीमें तथा एक प्रति जन सिद्धान्त भवन आरामें मौजूद है। इसी प्रतिके अन्तमें रचना-काल वि० सं० १६१६, वैसाख बदी नवमी दिया है।