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हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि
भावे नहीं भोजन भूषण, कर्ण केरा माप । रालि करें कर माप ।"
परी नग में पान नीको,
मध्यकालीन कवियोंने 'विरह' का विवेचन करते हुए 'काम' शब्दका बहुत प्रयोग किया है । किन्तु यह 'काम' शब्द कामदेवका नहीं, अपितु 'विरह' का पर्यायवाची रहा है । पहले 'विरह' के अर्थमे 'काम' का प्रयोग होता था । कालिदास 'कामार्त्ता हि प्रकृतिकृपणा चेतनाचेतनेषु' मे भी 'काम' 'विरह' का ही प्रतीक है । अतः कोई यह न समझे कि नेमिनाथके विरहमे राजुल 'कामप्रपीडिता' रहती थी ।
३१. ब्रह्म रायमल्ल ( वि० सं० १६१५ )
ब्रह्म रायमल्ल सत्तरहवीं शताब्दी के प्रथम पादके समर्थ कवि थे । उन्होंने
और प्रसादगुणसे युक्त
राजमल्ल हो चुके है ।
हिन्दी के अनेकानेक काव्योंकी रचना की। इनकी भाषा सरस है । इनके पूर्व सोलहवी शताब्दी के अन्तिम पादमे पाण्डे दोनोंमें भेद स्पष्ट है' । पाण्डे राजमल्ल संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंशके विशिष्ट विद्वान् थे । उन्होंने हिन्दीमे तो केवल छन्द-शास्त्र लिखा है । छन्द-शास्त्रमे भी अधिकतर दृष्टान्त अपभ्रंशके ही है । कविवर बनारसीदासने इन्हीं राजमल्लका उल्लेख किया है । डॉ० जगदीशचन्द्र जैनने इन्हीं राजमल्लके विषयमे लिखा है कि आप जैनागमके बड़े भारी वेत्ता एक अनुभवी विद्वान् थे I
ब्रह्म रायमल्ल जन्मसे ही
जो
कवि थे । उनमे हृदयपक्ष प्रधान था । उन्होंने • कुछ लिखा हिन्दीमें लिखा, संस्कृत - प्राकृत में नहीं। उन्होंने जैन नैयायिकों और सैद्धान्तिकोंका भी अध्ययन किया था, किन्तु उनकी शुष्कतासे प्रभावित नही हुए । उन्होंने जैन धर्मके मूल तत्वोंको मानवकी मूल वृत्तियोंके साथ आगे बढ़ाया । उनके काव्यों सरसता है ।
संस्कृत 'भक्तामर स्तोत्रवृत्ति को इनकी रचना माना जाता है। इसके आधारपर रायमल्लका जन्म 'हूबड़' वंशमें हुआ था। उनके पिताका नाम 'मा'
१. पं० नाथूरामजी प्रेमीने दोनोंको एक ही समझा था । हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास, पृ० ५० ।
२. उधृत कामताप्रसाद जैन, हिन्दी जैन साहित्यका संक्षिप्त इतिहास, पृ० ७६ । ३. सेठके कूंचा मन्दिर, दिल्लीकी प्रतिमें लेखकका नाम मुनि रत्नचन्द पड़ा है, इस विषय में खोजकी आवश्यकता है।