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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य दुरित और पापोंका भी निवारण हो जाता है। भगवान्के दर्शन अक्षय सम्पत्ति ( मोक्ष ) के कारण है, उसे प्राप्त करनेके लिए सभी आनन्द, रंग और विनोद न्यौछावर कर देने चाहिए,
"पास जी हो पास दरसण की बलि जाइय, पास मनरंगै गुण गाइये। पास बाट घाट उद्यान मैं, पास नागै संकट उपसमै । पा०। उपसमै संकट विकट कष्टक, दुरित पाप निवारणो । आणंद रंग विनोद वारू, अषै संपति कारणो ॥पा०॥"
२८. बूचराज (वि० सं० १५३७-१५९७ )
बूचराज हिन्दोके एक प्रतिष्ठित कवि थे। राजस्थानके जैन शास्त्रभण्डारोंमें उनकी अनेक रचनाएँ प्राप्त हुई हैं । किन्तु किसीमे भी उन्होंने अपना परिचय नहीं दिया है। उनकी प्रसिद्ध कृति 'नेमिनाथवसंतु'में केवल इतना लिखा है कि वे मूलसंघके भट्टारक पद्मनन्दिको परम्परामें हुए हैं। उनके वंश और मातापिता आदिका कोई उल्लेख नहीं है। 'सन्तोषतिलक जयमाल' में 'रचना-स्थल' हिसार (पंजाब) दिया हुआ है। उनकी रचनाओंपर राजस्थानीका प्रभाव है। अतः ऐसा प्रतीत होता है कि वे राजस्थानके रहनेवाले थे। वे ब्रह्मबूचाके नामसे प्रसिद्ध थे। ब्रह्मचारी होनेके कारण वे जगह-जगह घूमते-फिरते थे, अतः किसी ग्रन्थके हिसारमें समाप्त करनेसे, हिसारको उनकी जन्मभूमि मान लेना प्रामाणिक नही है।
बूचराजका रचनाकाल वि० सं० १५३७-१५९७ माना जा सकता है । ऐसा उनकी रचनाओसे प्रकट ही है। उन्होंने अपना दूसरा नाम बल्ह, वील्ह और वल्हव भी लिखा है। हो सकता है यह उनका उपनाम हो। इनकी ख्याति अधिक थी। वि० सं० १५८२ में इनको 'सम्यक्त्व कौमुदी'की एक हस्तलिखित प्रति चाटसू नगरमे भेंट की गयी थी। उनकी उपलब्ध रचनाओंका परिचय निम्न प्रकार है: मयण जुज्झ
यह एक रूपक काव्य है। इसका निर्माण वि० सं० १५८९ मे हुआ था। इसमे भगवान् ऋषभदेव और कामदेवका युद्ध दिखाया गया है। ऋषभदेव मोक्षरूपी लक्ष्मी प्राप्त करना चाहते है, किन्तु कामदेव बाधा उपस्थित करता है, अतः युद्ध होना अनिवार्य हो जाता है । कामके प्रमुख सहायक मोह, माया, राग, द्वेष है।