SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य ९५ १ का लिखा हुआ है । और उनका काव्य 'पार्श्व भवान्तरके छन्द' जिस गुटके मे अंकित है, वह वि० सं० १५७६ का लिखा हुआ है। इससे प्रमाणित है कि उन्होंने अपनी इन कृतियोंका निर्माण विक्रमकी १६वीं शताब्दी के उत्तरार्धमे कभी किया होगा । यह सुनिश्चित है कि भट्टारक जयकीर्ति, उन जयकीर्त्तिसे स्पष्टरूपेण पृथक् है, जिन्होने ‘छन्दोनुशासन'का निर्माण किया था, और जो रामकीर्त्तिके गुरु थे। 3 वे संस्कृतके विद्वान् थे, और भट्टारक जयकीर्तिकी उपर्युक्त दोनों रचनाएँ हिन्दी में हैं । उनकी एक अन्य कृति 'ब्रह्मचर्य उपदेशमाला' के नामसे प्राप्त हुई है, जो दि० जैन बड़ा मन्दिर, जयपुरके गुटका नं० २५८ मे निबद्ध हैं । 'पार्श्व भवान्तर के छन्द' का सम्बन्ध भगवान् पार्श्वनाथकी भक्तिसे है । इसमें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पूर्व भवोंका वर्णन हुआ है। पार्श्वनाथ जैनोंके तेईसवें तीर्थं - कर थे । इस काव्यमे वर्णनकी शुष्कता नही है, अपितु एक प्रवाह - पूर्ण सौन्दर्य है । २६. श्री क्षान्तिरंग गणि ( वि० की १६वीं शताब्दीका उत्तरार्धं ) श्री क्षान्तिरंग गणिकी रचना खैराबाद 'पार्श्वजिनस्तवन' उस गुटके में निबद्ध है, जो वि० सं० १६२६ का लिखा हुआ है। इससे निश्चित है कि वे इस संवत् से पूर्व कभी हुए हैं । सम्भवतः वे १६वीं शताब्दी विक्रमके उत्तरार्द्धमे मौजूद थे। नगर खैराबाद जिला सीतापुरमें है । उसके जैन मन्दिरमें पार्श्व जिनकी प्रतिमा विराजमान है । कहा जाता है कि वह प्रतिमा अतिशयपूर्ण है । उसमे कुछ ऐसी वीतरागता है कि उससे प्रत्येक दर्शक प्रभावित होता ही है । क्षान्तिरंग गणिने इसी प्रतिमाको लक्ष्य कर 'पार्श्वजिनस्तवन' की रचना की है । भगवान्की महत्ता में भक्तको पूरा विश्वास है । वह जानता है कि भगवान्‌की कृपासे अज्ञान तो दूर होता ही है, किन्तु जन्म-जन्म के मनोवांछित फल भी प्राप्त होते है । खैराबादको सुशोभित करनेवाली पार्श्व जिनेन्द्र की प्रतिमामे मोहिनी १. यह गुटका, श्री दि० जैन बडा मन्दिर, जयपुरमें वेष्टन नं ० २६५२ में निबद्ध है । २. यह गुटका पं० दीपचन्द्र पण्डयाको 'देराटू' नामके गॉवके जैनमन्दिरके शास्त्रभडारकी शोध करते हुए प्राप्त हुआ था । अनेकान्त, वर्ष ५, किरण ६-७, जुलाई १६४२ ई०, पृ० २५७ । ३. पं० नाथूराम प्रेमी, जैनसाहित्य और इतिहास, पृ० ४०५ | ४. यह गुटका, बाबू कामताप्रसादजी जैन, अलीगंजके पास है ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy