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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य "कणकतणी परि तनु अमिराम, तिणि कनकरथ दीधउ नाम । गुणियण संघ घणू तसु मगइ, निरगुण दीठा मन कमकमइ ।। सूरवीर समरांगणि धीर, दाता जलनिधि जिम गंभीर । बोलइ सुललित मधुरी बाणि, सहु को तिणि रीझइ अमिराम ॥१७-१८॥" शीलकी महिमाका वर्णन करते हुए कविने सुन्दर शब्दोंमे लिखा है,
"सीलई हूइ नीरोग पुण, सीलई टलइ किलेस, सीलई रूप सरूप हुई, सीलि न दुख लव लेस । सीलइ जस जगि विस्तरइ, सीलि न हुई संताप, सीलई संचई पुण्य धन, सीलि पखालइ पाप । सीलई रीझइ लोक सवि, विबुध करई सुपसाउ,
हेमादिक सिद्धह तणउ, सीझई सयल उपाउ ॥४-६-७॥" जो नर-नारी भावपूर्वक 'ऋषिदत्ता चौपई' को पढ़ते है और सुनते है, उनके सभी मनोवांछित कार्य पूर्ण हो जाते है, वे सकल शास्त्रसिद्धान्तोंमे निपुण बन जाते है, तथा वे नवरस, नवतत्त्व और जिनवरके गुणोको पहचान उठते है,
"जे नर नारी मावई मणिसिइ,
आणी मन ऊलट नितु सुणिसिई, भाव सकति भरपूरि। नितु नितु ते मनवंछित पांमइ,
सकल शास्त्र सिद्धंत वखाणइ, नव तत नव रस वाणी जाणइ,
जिनवर गुण विहसंति ॥३०१-३०२॥"
२४. मुनि जयलाल (विक्रमकी १६वीं शताब्दीका उत्तरार्ध) ___ मुनि जयलालकी रचना 'विमलनाथस्तवन'से मुनिजीके जीवन और गुरुपरम्पराके विपयमे कुछ भी विदित नहीं होता। यह रचना जिस गुटकेमे निबद्ध है, वह वि० सं० १६२६ का लिखा हुआ है, इससे सिद्ध है कि मुनि जयलाल वि० सं० १६२६ से पूर्व कभी १६वी शताब्दीके उत्तरार्धमे हुए है। विमलनाथस्तवन
यह काव्य तेरहवे तीर्थकर विमलनाथकी भक्तिसे सम्बन्धित है। वैराटपुर (जयपुर रियासत ) में विराजमान विमलप्रभुकी प्रतिमाको लक्ष्य कर ही इन
१. यह गुटका, श्री कामताप्रसादजी जैन, अलीगंजके संग्रहमें मौजूद है।