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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि २३. देवकलश (विक्रमकी ५६वीं शातीका उत्तरार्ध)
देवकलश, उपकेशगच्छके उपाध्याय देवकलोलके शिष्य थे। उनकी गुरुपरम्परा इस प्रकार है : देवकुमार, कर्मसागर, और देवकलोल'। देवकलशके जन्म-स्थानके विषयमे कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। किन्तु उपकेशगच्छीय होनेके नाते यह कहा जा सकता है कि वे गुजरात प्रान्तके ही रहनेवाले थे। उनकी भाषापर भी गुजरातीका अधिक प्रभाव है। ऋषिदत्ता
यह देवकलशकी एक-मात्र रचना है। इसका निर्माण वि० सं० १५६९ मे हुआ था। इसकी एक हस्तलिखित प्रति, दिल्ली सेठ कूचाके दिगम्बर जैन मन्दिरमे मौजूद है।
'ऋषिदत्ता' एक कथा-काव्य है। ऋषिदत्ता, राजा सिंहरथकी पत्नी थी। इम काव्यमे उसके शीलगुणका उत्तम वर्णन है। अन्तमे सिंहरथ और ऋषिदत्ता दोनोने ही साधु-दोक्षा धारण कर ली और भद्दलपुर नामकी प्रसिद्ध नगरीसे निर्वाणको प्राप्त हुए । भद्दलपुर भगवान् शीतलनाथकी जन्मभूमि मानी जाती है । ___ इस काव्यको उत्तमकोटिमे गिना जा सकता है । उक्तिवैचित्र्य और भावोन्मेषने ऐसा आकर्षण उत्पन्न कर दिया है कि उससे पाठकके हृदयका तादात्म्य अवश्य ही हो जाता है । आलम्बनमे समानधर्मके निरूपणने 'रस' को जन्म दिया है।
भाषामे ऐसा लालित्य है कि उपदेश अथवा वर्णनात्मकताकी शुष्कता भी सरस हो गयी है। सिंहरथके पिता कनकरथके गुणोके वैभवका वर्णन ऐसा ही है,
१.श्री उवएस गछसिंगार, वाचकवर श्रीदेवकुमार, विद्या चवद अपार ।
तासु पाटि उवझाय कर्मसागर, हूआ सर्वगुणमणि रयणागर शास्त्रतणा आधार । तासु पट्टि उवझाय जयवन्त देवकल्लोल महिमावन्त, दिन-दिन ते उदिवन्त । ऋषिदत्ता चौपई,अन्तिम प्रशस्ति, पद्य २६६-२६८, जैनगुर्जरकविश्रो, भाग ३, पृ० ५५५ । २. तास सीसदेग कलसिइं हरसिइ, पनरह सइ गुणहत्तरि बरसिइं।।
रचिउ सीलप्रबंध, ए चरित रिषिदत्ता केरउ । सील तणोउ नापन उनवेर उ छइ प्रगट संबंध ॥ दिगम्बर जैन मन्दिर सेठके फूंचा, दिल्लीकी हस्तलिखित प्रति ।