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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य करते हुए कविने लिखा है कि जो कोई इसको कहता और सुनता है, उसके मनकी सभी आशाएँ पूर्ण हो जाती है, "कीधी कथा ए सीता तणी, सीलतणी महिमा जसु वणी । माई मणिज्य बहुगुण पुणी, पूरइ त्रास सदा मन तणी ॥ १७० ॥” ८९ 9 'आराम शोभा चौपई' ' के आदिमे भगवान् अरिहन्त और रत्नत्रयकी महिमा - का वर्णन किया गया है, "श्री जिन शासनि जगि जयउ, जिणि राजा अरिहंत । दया धर्म भाषउ मलउ, भय भंजण भगवंत ||१|| जिणवरि भाष्या श्रीमुखइ, बोलई त्रिन्नि सुपवित्त | ज्ञान अनई दरिसण वली, चरण तत्व गुणजन्त ॥२॥ रत्नत्रय जे नर लही, पालई ते नर धन्य । afa विशेषि दंसण लही, सुख संयोग सुपुन्य || ३ || " 'मृगावती चौपई' के आरम्भमे भी शारदा, गुरु, चौबीस तीर्थंकर और भगवान् अरिहन्तकी वन्दना की गयी है, "सामणि देवति शारदा, सुगुरुजी हर्ष समुद्र | afts समरथ चडबीस जिण, वारण भवह समुद्र ॥१॥ श्री जिनशासन वर नयर, राजा श्री अरिहंत । समवसरण लईठा सभा, भाषइ श्री भगवन्त ॥ २ ॥” 'चित्रसेनपद्मावती रास" में 'नवकारमन्त्र' की महत्ताका वर्णन किया गया है, "प्रथम क्षीर मंत्रि हि वडऊं, होऊ कार जिमसार । अंतिम सायरइ गंग जलि, मंत्रइ वडड नत्रकार ||४|| " इसी रासके प्रारम्भमे भगवान् शान्तिनाथ, जो पाँचवें चक्रवर्ती भी थे, की वन्दना की गयी है, १. आराम शोभा चौपई, बीकानेरमें, वि० मं० १५८३ में लिखी गयी थी । उसका आदि और अन्तका भाग, श्री मोहनलाल दुलीचन्द्र देसाईने दिया है । जैनगुर्जरकवि, तीजो भाग, पृ० ६२५ | २. मृगावती चौपईकी रचना, बीकानेर में, वि० सं० १६०२ में हुई थी । वही, पृ० ६२६ । ३. चित्रसेन पद्मावती रासकी रचना, जोधपुरमें वि० सं० १६०४ में हुई थी । वही, पृ० ६२७ । १२
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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