________________
हिन्दी जैन-भक्ति काव्य और कवि २१. विनयसमुद्र (वि० सं० १५८३)
विनयसमुद्र, उपकेशगच्छके हर्षसमुद्रके शिष्य थे। हर्षसमुद्रके भी गुरुका नाम सिद्धिसूरि था। विनयसमुद्रका रचना-काल वि० सं० १५८३ से १६०५ तक माना जा सकता है। उन्होंने वि० सं० १५८३ मे 'विक्रम प्रबन्ध चौपई की और वि० सं० १६०५ में 'रोहिणेय रास' की रचना की थी। इस समय उनकी आठ रचनाएं उपलब्ध है, सभी उपर्युक्त समयके अन्तर्गत ही रची गयीं।।
वे रचनाएं इस प्रकार है : "विक्रमप्रबन्ध चौपई', 'आरामशोभा चौपई', 'अंबड चउपई', 'मृगावती चौपई', 'चन्दनबाला रास', 'चित्रसेनपद्मावती रास' और 'पद्मचरित्र' । इनमें अंबडच उपई श्री मुनिरत्नसूरिके संस्कृतमें लिखे गये 'अंबडचरित्र'का भावार्थ लेकर लिखी गयी है, अवशिष्ट सभी मौलिक है । इन रचनाओंपर गुजरातीका विशेष प्रभाव है। विनयसमुद्रकी कृतियोंमें भक्तिके उद्धरण
_ 'विक्रमप्रबन्ध रास मे ४६९ पद्य हैं। इसके प्रारम्भमें ही सरस्वतीकी वन्दना करते हुए कविने लिखा है,
"देवि सरसति प्रथम प्रणवेवि, वीणा पुस्तक धारिणी।
चंद्र विहंसि सु प्रसंसि वरुलइ कासमीरपुर वासिणी ॥" 'पद्मचरित्र में सीताका चरित्र प्रधान है। उसके शीलकी महिमाका वर्णन १. श्री उवएसगछ गणवर सूरि, चरण करण गुण किरण मयूर ।
रयण प्रणु गुणगण भूरि, तसु अनुक्रमि जंपइ सिद्धसूरि ॥ तेह नइ वाचक हर्ष समुद्र तसु जसु उजल बीर समुद्र । तसु विनये विन या बुद्धि एह, रच्यु प्रबंध निरखि तणेह ॥ विक्रमप्रबन्ध रास, पद्य ४६७-४६८, राजस्थानके जैनशास्त्रमण्डारोंकी ग्रन्थसूची;
भाग ३, पृष्ठ २६६। २. अंबड मोटउ हूयो विसाल, तासु चरित्र सुणी रसाल,
श्री मुनिरत्न सूरिनो कह्यो, तेहथकी भावारथ लह्यो। अंबड चउपई, अन्तिम प्रशस्ति, ११वॉ पद्य, जैनगुर्जरकविओ, प्रथम भाग,
पृष्ठ १६६ । ३. यह काव्य, जयपुरके ठोलियोंके दि० जैन मन्दिरके गुटका नं० १०२ में अंकित है।
रचनाकाल वि० सं० १५८३ दिया है। ४. पद्मचरित्रकी रचना वि० सं० १६०४ में हुई थी। इसकी एक हस्तलिखित प्रति
उदयपुरके शास्त्रभण्डारमें मौजूद है। यह प्रति वि० सं० १६५६, आषाढ़ मास, शुक्लपक्ष १४ की लिखी हुई है। जैनगुर्जरकविओ, भाग १, पृ० १७० ।