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________________ ८७ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य ___ स्पर्शेन्द्रियको विषमता दिखलाते हुए कविने लिखा है कि इसी इन्द्रियके कारण वनमे स्वच्छन्द विचरनेवाला हाथी, लोहेको शृंखलाओमे बंधता है, और अकुशके धावोंको सहन करता है । कीचक, रावण और शंकरने भी इसी इन्द्रियके कारण अनेकों दुःख उठाये थे। नेमीसुरको बेल ___ इसका दूसरा नाम 'नेमिराजमती बेल' भी है। इसका कोई स्पष्ट संवत् नहीं दिया है, किन्तु अनुमान है कि उपर्युक्त रचनाओके आस-पास ही यह भी रचा गया होगा। इसमे भगवान् नेमिनाथ और राजुलके जीवनका परिचय है। इसमे तीर्थकर नेमीश्वरकी भक्ति ही प्रधान है। पार्श्वनाथ सकुन सत्ता बत्तीसी इस काव्यको रचना वि० सं० १५७८ मे हुई थी। इसकी हस्तलिखित प्रति, पं० लूणकरजीके मन्दिर, जयपुरमे, गुटका नं० २५ मे अंकित है। गुण बेल ___इसकी हस्तलिखित प्रति, पं० लूणकरजीके मन्दिर, जयपुरमे गुटका नं० ९२ मे लिखी है । यह गुटका सं० १७२१ का लिखा हुआ है। 'चिन्तामणिजयमाल' और 'सीमन्धर-स्तवन'का उल्लेख पं० कस्तूरचन्द कासलीवालने किया है। १. वन तरुवर फल सफिरि, पय पीवत हु स्वच्छंद । परसण इन्द्रो प्रेरियो, बहु दुख सहै गयन्द ॥ बांध्यो पाग संकुल घाले, सो कियो मसकै चाले । परसण प्रेरहं दुख पायो, तिनि अंकुश घावा धायो ।। पंचेन्द्रिय बेल, नयामन्दिर देहलीकी हस्तलिखित प्रति । २. परसण रस कोचक पूरयो, गहि भीम शिलातल चूरचौ। परसण रम रावण नामइ, वारयो लंकेसुर रामइ । परसण रस शंकर राच्यौ, तिय आगे नट ज्यों नाच्यो । ३. यह काव्य, श्री दि० जैन बडा मन्दिर जयपुरके गुटका नं०६३ में, और श्री दि० जैन मन्दिर बधीचन्दजी, जयपुरके गुटका नं० २५ में अंकित है । ४. राजस्थानके जैन शास्त्रमण्डारोंकी ग्रन्थ सूची, भाग ३, प्रस्तावना, पृष्ठ १४ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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