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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि
बैठकर भट्टारक प्रभाचन्द्र धर्मोपदेश देते थे । वहाँ तोषक नामके विद्वान् और जीणा, ताहू, पारस, वाकुलीवाल, नेमिदास, नाथूसि और भुल्लण आदि उत्तम श्रावक रहते थे ।
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कवि ठकुरसीने 'कृपण चरित्र', 'मेघमालाव्रतकथा', 'पंचेन्द्रिय बेल', ‘नेमीसुरकी बेल’, ‘पार्श्व सकुन सत्ताबत्तीसी', 'चिन्तामणिजयमाल', 'गुणबेलि' और 'सीमन्धरस्तवन' की रचना की थी । सभीकी भाषा प्राचीन हिन्दीका विकसित रूप है | उसमे यत्र-तत्र अपभ्रंशके शब्दोंका भी प्रयोग हुआ है । रचनाएं सरस है । सभी में प्रसादगुण मौजूद है ।
कृपण-चरित्र
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कवि इस कृतिको वि० सं० १५८० मे, पौष मासकी पंचमी के दिन पूरा किया था। इस काव्यमे ३५ छप्पय है । इसमे एक कंजूसका आँखों-देखा चरित्र चित्रित किया गया है ।
कविके नगरमे ही एक कृपण रहता था । वह कंजूस था और उसकी पत्नी उदार तथा धार्मिक | एक बार पत्नीने सुना कि गिरनारकी यात्राके लिए संघ जा रहा है। उसने वहाँ चलनेका पतिसे आग्रह किया। उसने कहा कि वहाँ जाकर उन भगवान् नेमिनाथ के दर्शन करेंगे, जिन्होने मूक पशुओकी करुण दशा से द्रवित हो वैराग्य धारण किया था। उनकी वन्दनासे जन्म सफल होगा और अमर पद प्राप्त कर सकेंगे ।
व्ययको बात सुनकर कृपण बेचैन हुआ और अपने एक दूसरे कृपण मित्रकी सम्मति से पत्नीको, उसकी माँके घर भेज दिया ।
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१. पं० परमानन्द शास्त्री, कविवर ठकुरसी और उनकी कृतियाँ, अनेकान्त, वर्ष किरण १, पृ० १२ ।
२. यह काव्य बम्बईके दिगम्बर जैन मन्दिरके सरस्वती भण्डारमें, एक गुटके में लिखा है।
३. मै पंदरा सौ असइ, पौष पांच जगि जाण्यो ।
जिस कृपणु इक दीठु, तिसौ गुणु तासु बखाण्यो ।
बम्बई के दिगम्बर जैन मन्दिरके सरस्वती भण्डारकी हस्तलिखित प्रति ३५व छप्पय, उद्धृत पं० नाथूराम प्रेमी, हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास, बम्बई, १६१७ ई०, पृ० ३५ |
४. पं० परमानन्द शास्त्री, कविवर ठकुरसी और उनकी कृतियाँ, अनेकान्त, वर्ष १४, किरण १, पृष्ठ ११ ।