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________________ ८० हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि १९. विनयचन्द्र मुनि (१६वीं शती प्रथम पाद ) ___ मुनि विनयचन्द्र, माथुर संघीय भट्टारक बालचन्द्रके शिष्य थे। वे विनयचन्द्रसूरिसे स्पष्टतया पृथक् है । विनयचन्द्रसूरि चौदहवीं शताब्दीके रत्नसिंहसूरिके शिष्य थे। ___ मुनि विनयचन्द्र, गिरिपुरके राजा अजयनरेशके राज्य-कालमे हुए है। उन्होंने अजयनरेशके राज-विहारमे बैठकर ही अपने 'चूनड़ी' काव्यका निर्माण किया था। अजय नरेशका समय १६वीं शताब्दीका प्रारम्भ माना जाता है, अतः यह सिद्ध है कि विनयचन्द्रका रचनाकाल भी यह ही है। इसके अतिरिक्त जिस गुटकेमे 'चूनड़ी' काव्य लिखा हुआ मिला है, वह विक्रम संवत् १५७६ का लिखा हुआ है। इससे सिद्ध है कि काव्यका निर्माण वि० सं० १५७६ से पूर्व ही हो चुका था। 'चुनड़ी" चूनड़ी एक प्रकारको ओढनी है, जिसे रंगरेज भिन्न-भिन्न प्रकारके बेल-बूटे १. माथुर-संघहँ उदय मुणीसरु । पणविवि बालइंदु गुरु गण-हरु ॥ मुनि विनयचन्द्र, चूनड़ीं, दूसरा पथ, प्रथम दो पंक्तियाँ, अनेकान्त, वर्ष ५, किरण ६-७, पृ० २५८ । २. जैनगुर्जरकविओ, प्रथम भाग, पृष्ठ ५। ३. ति-हुयणि गिरिपुरु जगि विक्खायउ । सग्ग-खंडु णं घर-यलि आयउ॥ तहिं णिवसंते मुणिवरें, अजय गरिंदहो राय-विहारहिं । वेगें विरइय चूनडिय सोहहु, मुणिवर जे सुय धारहिं ॥३१॥ अनेकान्त, वर्ष ५, किरण ५-६, पृष्ठ २६१ ।। ४. यह गुटका, पं० दीपचन्दजी पंडयाको, अजमेर जिलेके देराटू नामक गॉवके जैन मन्दिरसे सम्बन्धित शास्त्रभण्डारमें मिला था। यह गुटका, कुरुजांगल देशके अन्तर्गत सुवर्णपथ दुर्गमें सोनीपत नगरमें, वि० सं० १५७६ ज्येष्ठ कृष्णा प्रतिपदाको, सिकन्दरशाहके पुत्र सुल्तान इब्राहीमके राज्यकालमें लिखा गया था। अनेकान्त, वर्ष ५, किरण ६-७, पृष्ठ २५७ । ५. यह काव्य, श्री दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर जयपुरके गुटका नं० १८३ में भी अंकित है। यह गुटका वि० सं० १५७० वैशाख सदी का लिखा हुआ है।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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