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________________ हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि भट्टारक शुभचन्द्र ने 'पाण्डवपुराण' की रचना वि० सं० १६०८ मे की थी । तत्पश्चात् उन्होने वि० सं० १६११ मे करकण्डुचरित्र और वि० सं० १६१३ मे 'स्वामीकार्तिकेयानुप्रेक्षा' की टीका लिखी । 'पाण्डवपुराण' की प्रशस्तिमे, उनके द्वारा लिखे गये २५ ग्रन्थोका उल्लेख हुआ है। श्री कस्तूरचन्द्रजी कासलीवालने उनके ४० से भी अधिक ग्रन्थोकी सूचना दी है। भट्टारक शुभचन्द्र ने हिन्दीमे 'तत्त्वसार दूहा' की रचना की थी । १ ७८ तत्वसार दूहा इसकी हस्तलिखित प्रति 'ठोलियान जैन मन्दिर, जयपुर' के शास्त्र भण्डारमे मौजूद है। इसमे ९९ पद्य है । भाषापर गुजरातीका अधिक प्रभाव है । सरल भाषा में उत्तम भाव सन्निहित हो सके है। मोक्षका निरूपण करते हुए कविने लिखा है, निःशेष होय विनाश । "कर्मकलंक विकारनो रे मोक्ष तव श्री जिन कही, जाणवा भावु श्रल्पास ||२६|| " कविने वर्ण और जातियोके भेदको कृत्रिम माना है। उनकी दृष्टिमे सभी जीवोकी आत्मा समान है । आत्मामे ब्राह्मणत्व अथवा शूद्रत्व नहीं आ सकता, क्योंकि उसका स्वरूप तरतमांश रूप नहीं है । इसोको व्यक्त करते हुए कविने कहा है, "उच्च नीच नवि अप्पा हुवि, कर्मकलंक तणो की तु सोइ । बंमण क्षत्रिय वैश्य न शुद्र, अप्पा राजा नवि होय क्षुद्र ॥७०॥ " आत्मा पवित्र है । वह घनी- निर्धन, दुर्बल-सबल, हर्ष-द्वेष, और सुख-दु:ख सबसे परे है । ये दोष उसे नहीं सताते, "अप्पा धनि नवि नवि निर्धन्न, नवि दुर्बल नवि अप्पा धन्न । मूर्ख हर्ष द्वेष नवि ते जीव, नवि सुखी नवि दुखी अतीव ॥७१॥" १. वही, पृष्ठ ३८४ २. प्रशस्तिसंग्रह, श्रीकस्तूरचन्द कासलीवाल सम्पादित । श्रीमहावीरजी अतिशयक्षेत्र कमेटी, जयपुर, प्रस्तावना, पृष्ठ १२ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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