________________
जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य महिमाके अर्थमे 'फागु'का प्रयोग किया है। बनारसीदास आदि कवियोंने 'अध्यात्म फागुओ' को भी रचना की।
_ 'आदोश्वरफागु' मे संस्कृत पद्य और फिर उन्हीका भाव हिन्दी पद्यमें दिया गया है। इसमे भगवान् आदीश्वरका समूचा जीवनवृत्त वणित हुआ है। प्रत्येक तीर्थकरका जीवन पंचकल्याणकोमे विभक्त है और इसी रूपमे उपस्थित करनेको परम्परा पहलेसे चली आ रही थी। ‘आदीश्वरफागु' भी इसी शैलीमे लिखा गया है । इसकी रचना वि० सं० १५५१ मे हुई थी। इसमे ५९१ पद्य है।
समूचे हिन्दी साहित्यमे सूरदासका बालवर्णन प्रसिद्ध है। उन्होने बालक कृष्णकी अनेक मनोदशाओंका चित्रण किया है। सच यह है कि वे इस क्षेत्रमें अकेले नहीं थे। मध्यकालीन जैन हिन्दी कवियोने तीर्थकरके गर्भ और जन्मसे सम्बन्धित अनेक मनोरम चित्रोंका अंकन किया है। इन अवसरोपर होनेवाले विविध उत्सवोंकी छटाको सूरदास छू भी न सके है। यह जैन कवियोंकी अपनी शैली थी, जो उन्हे अपनी पूर्व परम्परासे ही उपलब्ध हुई थी।
इस कृतिमे आदीश्वरके जन्मोत्सव-सम्बन्धी अनेक दृश्य है, जिन्हे कविने चित्रवत् ही उपस्थित किया है । जन्मके पश्चात् तत्काल ही इन्द्र बालक-आदीश्वरको पाण्डुक शिलापर स्नान करानेके लिए ले गया। देवगण भीर-समुद्रसे रत्न-जटित स्वर्ण-कलशोंमे जल भर-भरकर लाने लगे। उस समय विभिन्न बाजोंसे विविध ध्वनियां प्रस्फुटित हो उठी। उनके लिए उपयुक्त शब्दोंका चुनाव कवि-सामर्थ्यका द्योतक है,
"आहे रतन जडित अति मोटाउ मोटाउ लीघउ कुंम, क्षीर समुद्र शकू पूरीय पूरीय आणीयू अंम ॥८॥ आहे दुमि मि तबलीय वज्जइ घ्रमि घ्रमि मछल नाद
टणण टणण टंकारव झिणि झिणि झल्लर साद ॥८॥" आदीश्वरकी माने उसे मोतियोंका एक मोटा-सा हार पहना दिया है। उससे बालकका सौन्दर्य बढ़ा नही । वह एक बोझा-मात्र बनकर रह गया। किन्तु बेचारी मां अपने दिलको क्या करे। वह अपने पुत्रको विविध आभूषणोंसे सजाना ही चाहती है । वह सोचती है कि बालकका स्वाभाविक सौन्दर्य इससे और भी बढ़ जायेगा। मांकी यह अतृप्ति भी कितनी स्वाभाविक है । १. आहे एकाणउ अधिका शत पंचस लोक प्रमाण । सूधउ मणिसिई लिखिसिई ते नर अतिहिं सुजाण ॥ आदीश्वर फागु, आभेरशास्त्रभण्डारकी हस्तलिखित प्रति, २६२वॉ पद्य ।