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________________ परिचय मंड रविार को सं० १६१६ में हुई थी। १ इस कृति में कुल साढ़े पांच सौ चौपाइयाँ हैं । इस में माधवानल और कामकंदला के प्रेम का वडा मनोरम कथानक लिया गया है । प्रेम और शृगार के विषय का वडा ही शिष्ट और मर्यादापूर्ण निर्वाह-इस काव्य की विशेषता है। कवि की यह रचना आज भी राजस्थान और गुजरात में अत्यधिक प्रसिद्ध है। इनको दूसरी प्रसिद्ध और लोकप्रिय राजस्थानी कृति " ढोलामारू चौपाई" है। जिनकी रचना सं० १६१७ में हुई थी। २ लोक कथाओ सम्बन्धी कवि के ये दोनो ग्रन्य आनन्द काव्य महोदधि में प्रकाशित हैं। " ढोला मारू-रा दोहा" का प्रकाशन नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी से भी हुआ है और "माधवानल कामकंदला" का प्रकाशन गायकवाड ओरियन्टल सीरीज, वडोदा से। कुशललाम जैसलमेर के रावल हररान के आश्रित कवि थे। इन्ही रावलजी के कहने से कवि ने इस कृति का निर्माण किया था। कवि ने राजस्थानी के आदिकाव्य " ढोला मारू रा दूहा" में चौपाईयां मिलाकर प्रबंधात्मकता उत्पन्न की है। ३ श्री नाहटाजो ने कुशल लाभ की ११ रचनाओं का उल्लेख किया है ४ इन रचनाओ में "श्री पूज्यवाहण गीतम" ५, " नवकार छंद " तथा "गोडी पाच नाथ छंद" इनकी हिन्दी की रचनाएँ है। कवि की अन्य हिन्दी रचानाओ में स्थूलीभद्र छत्तीसी" रचना भी प्राप्त है ६ श्रपूज्यवाहण के चरणों में समर्पित हो उठा है। काव्य वडा ही सरस, भाव सौन्दर्य भाषा सम्यया से ओत प्रोत है "रावल मालि सुपाट धरि, कुंवर श्री हरिराज । विरचिएह सिण गारसि; तास केतूहल काज ॥ संवत् सोल सोलोतरह, जैसलमेर मझारि । फागुण सुदि तेरसि दिवसि, विरचि आदित्य वार ।। गाथा साढी पन्वणइ: ए चउपइ प्रमाण ।" माधवानल चौपई, प्रशस्ति संग्रह, जयपुर, पृ० २४७-२४८ २. संवत् सोलसय सतरोतरई, आपा त्रीजि वार सुरगुरनई। मारन ढोलानी चौपई, जैन गूर्जर कविओं, भाग १, पृ० २१३ ३ डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने यही माना है-हिन्दी साहित्य का आकिाल, विहार राष्ट्भापा परिषद्, पटना, १९५२, ई०, पृ० ६७ ४ रगंपरा, श्री नाहटाजी का लेख, राजस्थानी साहित्य का मध्यकाल, पृ० ०५ ५ प्रकाशित, ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, संपा० श्री अगरचंद नाहटा ६ राजस्थान में हिन्दी के हस्त० ग्रंथों की खोज, ४, पृ० १०५
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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