SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता ६५ <3 सदा गुरु व्यान स्नान लहरि शीतल वहई रे । कीर्ति सुजस विसाल सकल जग साते क्षेत्र सुदाम सुधर्मंह श्री गुरु पाय प्रसाद सदा सुख " गोडी पार्श्वनाथ स्तवनम् " मी कवि की हिन्दी मुख्य विषय भक्ति है । इसमें २३ पद्य है । २ नवकार छन्द की प्रति अहमदावाद के गुलाव विजयजी के भण्डार में सुरक्षित है । ३ इसमें १७ पद्य हैं तथा पंच परमेष्ठी की वंदना से संबंधित है । स्थूलभद्र छत्तीसी : मह महइ रे । नोपजइ रे । संपजड़ रे ।। ६४ ।। " रचना है । ? प्रस्तुत स्तवन का इस कृति में कवि ने रचनाकाल नहीं दिया है । इसमें कुल ३७ पद्य हैं । यह कृति बीकानेर की अनूप संस्कृत लायब्रेरी के एक गुटके के पृष्ठ ९१-९८ पर अंकित है | आचार्य स्थूलभद्र की भक्ति इस काव्य का मुख्य विषय है । भाषा वडी भी सरल एवं भावानुकूल है । भावों में सजीवता है, स्वाभाविकता है 22 'वैसा वाइड सुणी भयक लज्जित मुणि, सोच करि सुगुरन कइ पास आवई । चूक अब मोहि परी चरण तदि सिर धरि, आप अपराध आपई खभावइ ॥३७॥" साधुकीर्ति : (सं० २६१८ - १६४६ ) ये त्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भ के कवियों में से एक है । साधुकीर्ति खरतरगच्छीय मति वर्धन - मेरनतिलक- दयाकलश-अमरमाणिक्य के शिष्य थे । ५ ये ओसवाल वंसीय सचिती गोत्र के शाह वस्तुपालजी की पत्नी खेमलदेवी के पुत्र थे । इसी नाम के एक ओर कवि पंद्रहवीं शती में हो गये हैं, जो वद्रतपगच्छ के जिनदत्तमूरि के शिष्य थे । ६ विवक्षित साधुकोति खरतरगच्छ के साधु थे और इनका संबंध जैसलमेर वृहद् ज्ञान १ इसकी एक प्रति, बडौदा के श्री शान्तिविजयजी के भण्डार में सुरक्षित हैं । इसकी दूसरी प्रति, जयपुर के पं० लूणकरजी के मन्दिर में, गुटका नं० ६६ में लिखित है । २ जैन-गुर्जर कविओं, भाग १, पृ० २१६ ३ जैन गुर्जर कविओं, भाग १, पृ० २१६ ४ राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रंथों की खोज, चतुर्थ भाग, अगरचंद नाहटा संपादित, साहित्य संस्थान, उदयपुर, १९५४ ई०, पृ० १०५ ५ जैन गूर्जर कविओं, भाग १, पृ० २१६ ३ वही, पृ० ३४
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy