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________________ जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविना इन रासकी एक प्रति आमेर शास्त्र भण्डार में हैं। रचना साधारण कोटि की है। भाषा पर गुजराती का प्रभाव स्पष्ट लक्षित है । ર श्रीपाल रास की ४० पन्नों की एक प्रति आमेर शास्त्र भण्डार में है । इनमें २९७ पद्य है और सं० १६८६ को लिखी प्रति है । इसमें राजा श्रीपाल की कथा है कथानक बड़ा हो मनोरम और भक्तिपूर्ण भावों से आपूर्ण है । जिनेन्द्र की भक्ति इसका प्रमुख विषय है । भविष्य दत्त कथा की रचना सं० १९३३ में कार्तिक मुदी चोदन को शनिवार के दिन हुई थी । १ सं० १६९० की लिखी एक प्रति आमेर शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है । उसमें ६७ पन्ने हैं । उपर्युक्त सभी ग्रंथों में उनकी हिन्दी भाषा गुजराती तथा अपभ्रंश से प्रभा वित हुई प्राप्त होती है । कनकसोम (सं० १६१५ - १६५५ ) ये खरतरगच्छीय दयाकलन के शिष्य अमर माणिवय के शिष्य साधुकीति के गुरुभ्राता थे २ इनका जन्म ओसवाल नाहटा परिवार में हुआ था । सम्वत् १६३८ में सम्राट अकबरके आमंत्रण पर लाहौर जाने वाले जिनचन्द्रसूरि के साथ आप भी थे । ३ "मंगल कलश भाग" ४ तथा अपाढ़ भूति स्वाध्याय ५ नामक गुजराती रचनाओं के साथ इनकी एक हिन्दी रचना जड़त पदवेलि ६ भी प्राप्त होती है । " " 16 " जइत पदवेलि ” में खरतरगच्छीय साधुकीर्ति द्वारा अकबर के दरबार में तपागच्छयों को शास्त्रार्थ में निरुत्तर करने का वर्णन है । ܀ १ सोलह से तैतीसा सार, कातिक सुदी चौदस सनिवार | स्वांत नक्षत्र सिद्धि शुम जौग, पीड़ा खन व्योपै रोग ॥ अंतिम प्रशस्ति "" "' " दया अमर माधिक्य " गुरुसीस साधुकीत लही जगीस | मुनि " कनकसोम इम माखई, चउविह श्री संघ की साखई ॥ ४६ ॥ £1 , "} ३ युग प्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि, अगरचंद तथा भंवरलाल नाहटा ४ प्राचीन फागु संग्रह, संपा० डॉ० भोगीलाल सांडेसरा, पृ० ३३, प्रका० पृ० १५०-७१ ५ जैन गूर्जर कविओ, भाग १, पृ० २४५ ६ राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रंथ सूची, भाग ३, पृ० ११७
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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