________________
जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
८७
आणदवर्धन सूरि : (सं० १६०८ आसपास )
ये खरतरगच्छ के धर्मवर्धनसूरि के शिष्य थे । १ इनके समकालीन खरतरगच्छ में ही एक अन्य महिमा सागर के शिष्य आणंदवर्धन भी हो गये
इनकी रची हुई एक कृति 'पवनाभ्यास चौपाई' उपलब्ध है । २ भापा गुजराती मिश्रित हिन्दी है : गुजराती बहुला हिन्दी प्रयोग को देखते हुए इनका गुजरात में दीर्घकाल तक रहना सिद्ध है । इनकी अन्य किसी हिन्दी-गुजराती कृति की जानकारी नहीं मिलती । विशेप परिचय भी अनुपलब्ध है। पवनाभ्यास चौपई :
___ इसमें कुल १२७ पद्य है । कवि ने इसे 'ब्रह्मजान चौपाई' भी कहा है ' अखाजी जैमी ज्ञानश्रयी कविता की यह सुन्दर कृति है। इसकी रचना संवत् १६०८ में हुई थी। ३ उदाहरणार्य प्रारंभ की कुछ पंक्तियां द्रष्टव्य हैं
, ". परम तेज पणमु एक चित्त, जे माहि दीसइ बहुलु चित्त,
___जन हुइ पोतइ पूरव दत्त, तउ पामीजइ एहजि तत्त ।" भापा, शैली की दृष्टि से ये साधारण कोटि के कवि हैं। मालदेव : ( सं १६१२ आसपास )
ये वृद्ध तृपागज के आचार्य भावदेवसूरि के शिष्य थे। ४ इनका अधिकांश निवास बीकानेर का भटनेर स्थान रहा है अत: इनकी रचजाओं में मारवाड़ी का विगेप असर है । खंभात के श्रावक कवि ऋषिभदास ने अपने " कुमारपाल रास" के प्रारंभ में जिन जैन-गूर्जर कवियों का स्मरण किया है उनमें मालदेव का भी उल्लेख है । ५ इनकी एक रचना " भोजप्रवंध" के संबंध में नाथूराम प्रेमीजी लिखते हैं ६ १ जैन गूर्जर कविओ, भाग ४, खण्ड १, पृ० १००० २ वही, ३ संवत सोल अठोतर वरसि, आसो मासि रचिउं तन हरसि । वही, पद्य सं० १२४ ४ प्राचीन फागु संग्रह, संपा० डॉ० भोगीलाल सांड़ेसर, पृ० ३२ ५ " हंसराज", "वांछो", "देपाल", "माल", "हेमनी बुद्धि विशाल, "सुसाधु", "हंस" समरो (यो ६) "सुरचंद" शीतल वचन जिम शारद चंद ॥ ५४ ॥ कुमरपाल रासऋषभदास । ६ हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, नाथूराम प्रेमी, पृ० ४५