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________________ जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता भाषा प्रीढ़ है ; परन्तु उसमें गुजराती की झलक है और अपनश गब्दों की अधिकता है। कारण, कवि गुजरात और राजपूताने की बोलियों से अधिक परिचित था।" इगने भी कवि का गुजरात से दीर्घकालीन सम्बन्ध स्थापित होता है। मालदेव बड़े अच्छे कवि हो गये हैं। इनके प्राकृत एवं संस्कृत ग्रंथ भी मिलते हैं । गुजराती-राजस्थानी मिश्रित हिन्दी की रचनाएं स्तर एवं संख्या की दृष्टि से भी विशेष महत्वपूर्ण हैं । इनकी ११ रचनाओं का पता चला है । १ इनके अनन्तर श्री नाहटाजी ने इनकी अन्य कुछ रचनालों के साथ गीत, स्तवन, सज्झाय आदि का भी उल्लेख किया है। २ 'महावीर पारणा', 'महावीर लोरी, तथा 'पुरन्दर चौपाई' का प्रकाशन भी श्री नाहटा जी द्वारा हुआ है। कवि की अधिकांग रचनाओं में रचना-संवत तथा रचना स्थान का उल्लेख नहीं है। इनकी ' वीरांगदा चौपाई' में रचना काल संवत १६१२ दिया गा है अतः इसी आधार पर उनका उपस्थित काल संवत १६१२ के आस पास माना जा सकता है । __ कवि की अधिकांश रचनाएं लोक कथा पर आधारित हैं इनकी रचनाओं में प्रयुक्त सुभापितों की लोकप्रियता तो इतनी रही कि परवर्ती कवियों ने भी इनके सुभापितों को उद्धृत किया है । जयरंग कवि ने अपने संवत १७२१ में रचे कयवन्ना रास में माल कवि के सुमापियों का खुलकर प्रयोग किया है। उदाहरणार्थ " दुसह वेदन विरह की, साच कहे कवि माल, जि जिंणकी जोड़ी विछड़ो, तणिका कवण हवाल ॥३॥" कवि की कुछ प्रमुख रचनाओं के द्वारा हम इनकी भापा का परिचय प्राप्त करने का यत्न करेंगे। पुरन्दरकुमार चौपई रचना ३७२ पद्यों में रचित है। इसकी रचना संवत १६५२ में हई। ३ मुनि श्री जिनविजयजी ने अपने पास की इसकी प्रति के विषय में लिखा है ४-- " यह 'पुरन्दर कुमार चउपई' ग्रन्थ हिन्दी में है ( गुजराती में नहीं ) इसे मैंने आज ही ठीक ठीक देखा है । रचना अच्छी और ललित है।" अपनी इस कथा की सरसता के लिए कवि स्वयं कहता है - १ जैन गूर्जर कविओ, भाग ३, खंड १, पृ० ८०७-८१६, तथा भाग-१, पृ० ३०४-१० २ परंपरा, राजस्थानी साहित्य का मव्यकाल, ले० अगरचंद नाहटा, पृ१ ७२ ३ जैन गूर्जर कविओ, भाग १, पृ० ३०६ ४ हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, नाथूराम प्रेमी, पृ० ४४
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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