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________________ परिचय खंड कवि की अन्य लघु कृतियां भी साधारणतः ठीक है। कवि के प्राप्त हिन्दी पदों में से एक अंश अवलोकनीय है - " जागता जिनवर जे दिन निरख्यो, धन्य ते दिवस चिन्तामणि सरिखो । सुप्रभाति मुख कमल जु दीठ, वचन अमृत थकी अधिक जु मीठठु ॥१॥ सफल जनम हवो जिनवर दीठा, करण सफल सुण्या तुम्ह गुण मीठा ।।२।। - धन्य ते जे जिनवर पद पूजे, श्री जिन तुम्ह विन देव न दूजो ॥३॥ स्वर्ग मुगति जिन दरसनि पांमे, "चन्द्रकीरति” सरि सीसज नामे ॥४॥" भाव, मापा एवं शैली की दृष्टि से कवि की सभी कृतियां साधारणतः अच्छी हैं । वि नय समुद्र : ( सं०१६०२-१६०४ आस पास ) ये उपकेशगच्छ में हुए सिद्धसूरि के शिष्य हर्पसमुद्र के शिप्य थे। १ इनके द्वारा रचित ७ कृतियों का उल्लेख मिलता है । २ कवि की समस्त रचनाएं गुजराती मिश्रित हिन्दी में है। अत्यधिक गुजराती प्रभावित भाषा से कवि का गुजरात-निवासी होने या गुजरात मे दीर्घकाल तक रहने का अनुमान किया जा सकता है। इनकी “ मृगावती चौपाई " विशेष उल्लेखनीय है। इसकी रचना बीकानेर में सं० १६०२ में हुई थी। शील विषय पर रचित यह कवि का एक सुन्दर काव्य ग्रंथ "चित्रसेन पद्मावती रास" में नवकार मंत्र की महिमा है। इसकी रचना सं० १६०४ में हुई थी। " पद्मचरित्र" में राम और सीता का चरित्र प्रधान है। उनके शील एवं चरित्र की महिमा का अच्छा वर्णन हुआ है । __ कवि की भाषा पर गुजराती तथा राजस्थानी का विशेष प्रभाव है । भाषा शैली की दृष्टि से ये साधारण कोटि के कवि हैं। इसकी रचना सं० १६०४ में हुई थी। १ विक्रम प्रबंध रास, राजस्थान के शास्त्र भण्डारों की ग्रंथ सूची, भाग ३, पृ०२६६ २ जैन-गूर्जर कवि नो भाग-३, खंड १, पृ० ६१५-१६ तथा भाग १, पृ० १६८-७०
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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