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जन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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चन्द्रकीर्ति की प्राप्त रचनाओं में " सोलहकरण रास " और जयकुमार आल्यान विशेष उल्लेखनीय हैं । इनके रचित कुछ हिन्दी पद भी उपलब्ध हैं। सोलहकरण रास :
विभिन्न छन्दों और रागों में रचित कवि की लघु कृति है। इसमें रचना संवत् का उल्लेख नहीं है। इसकी रचना भडौच नगर के शांतिनाथ मन्दिर में हुई थी। १ कवि की इस रास कृति में पोडशकारण व्रत की महिमा गाई है । अन्त में कवि ने अपनी गुरुपरंपरा का उल्लेख किया है । जयकुमार आख्यान :
__चार सर्गों का वीर-रस प्रधान एक आख्यान काव्य है। प्रथम तीर्थकर " ऋषिभदेव" के पुत्र सम्राट भरत के सेनापति " जयकुमार" का चरित्र, इसकी कथा का मुख्य आधार है। इसकी रचना बारडोली नगर में संवत १६५५, चैत्रसुदी दसमी के दिन हुई थी।
इसके प्रथम सर्ग में कवि ने जयकुमार और सुलोचना के विवाह का वर्णन किया है । दूसरे और तीसरे में दो भवों का ( पूर्व के ) वर्णन और चौथे में जयकुमार के निर्वाण प्राप्त करने की कथा वर्णित है । मूलतः वीर-रस प्रधान काव्य है फिर भी शृंगार एवं गांतरस का सुन्दर नियोजन हुआ है।
सुलोचना के सौन्दर्य के वर्णन का एक प्रसंग द्रष्टव्य है ---- " कमल पत्र विशाल नेत्रा, नाशिका सुक चंच ।
अष्टमी चन्द्रज भाल सोहे, वेणी नाग प्रपंच ।। सुन्दरी देखी तेह राजा, चिन्त में मन मांहि ।
ए सुन्दरी सूर सुदरी, किन्नरी किम कहे वाम ॥" युद्ध का वर्णन तो अत्यन्त मनोरम एवं स्वाभाविक वन पड़ा है। जयकुमार और अर्ककीर्ति के बीच युद्ध का एक प्रसंग अवलोकनीय है
" हस्ती हस्ती संघाते आथंडे,
रथो रथ सूभट सहू इम भडे । हय हयारव जव छजयो,
__ नीसांण नादें जग गज्जयो ॥" भाषा राजस्थानी डिंगल है । भाषा एवं भाव की दृष्टि से कृति महत्वपूर्ण है। १ श्री मरुचय नगरे सोमणु श्री शांतिनाथ जिनराय रे । - -