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जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
एवं उत्तर प्रदेश में साहित्य एवं संस्कृति का बड़ा उत्साहप्रद वातावरण विनिर्मित
किया ।
इनके अन्य संस्कृत ग्रंथों में " चंदना चरित बागड प्रांत में निबद्ध किया ओर " कीर्तिकेयानुप्रेक्षा टीका " की रचना मी वागड के सागवाडा नगर में हुई । इसी तरह संवत् १६०८ में पाण्डव पुराण को हिसार ( पंजाब ) में सम्पूर्ण किया ।
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भट्टारक शुभचंद्र अपने समय के गणमान्य विद्वान थे । संस्कृत भाषा पर उनका असाधारण अधिकार था । उन्हें " त्रिविविविद्याधर " और षट्भापा कवि चक्रवर्ती की पदवियां मिली हुई थीं । १
षट्भाषाओं में संभवतः संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, गुजराती एवं राजस्थान की भाषाएं थीं । कवि न्याय, व्याकरण, सिद्धांत, छन्द, अलंकार आदि विषयों के अप्रतिम विद्वान थे । २ ये ज्ञान के सागर, अनेक विषयों में पारंगत तथा वक्तृत्व कला में निपुण थे । उनका व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक था । संस्कृत में इन्होंने विपुल साहित्य का सर्जन किया है । पाण्डव पुराण की प्रशस्ति में उनके द्वारा लिखे गये १५ ग्रंथों का उल्लेख है | डॉ० कस्तुरचंद कासलीवाल ने इनके ४० ग्रंथों का उल्लेख किया है । ३ इनकी हिन्दी रचनाएं इस प्रकार हैं. • महावीर छन्द, विजयकीर्ति छंद, गुरुछंद, नेमिनाथ छंद, चतुर्विंशति स्तुति, क्षेत्रपालगीत, अष्टाहिनका गीत, तत्वसार दोहा तथा स्फुट पद । इन रचनाओं में अधिकांश तो लघु स्तवन मात्र है, जो श्री दिगम्बर जैन मन्दिर बधीचन्दजी, जयपुर, तथा पटौदी दिगम्बर जैन मन्दिर, जयपुर के संग्रहों में सुरक्षित हैं । इनकी भाषा पर गुजराती का प्रभाव विशेष है ।
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" इनकी " तत्वसार दोहा " कृति विशेष उल्लेखनीय है । ढोलियान जैन मन्दिर, जयपुर के भण्डार में सुरक्षित है । इसमें ९१ दोहे जिनमें सात तत्वों पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है । भाषा गुजराती मोक्ष का निरूपण करते हुए कवि ने कहा है
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इसकी एक प्रति
और छन्द है,
प्रभावित है ।
" कर्म कलंक विकारनोरे, निःशेष होय विनाश ।
मोक्ष तत्व श्री जिन कही, जाणवा भावु अल्पास ।। १६ ।। "
विभिन्न रागों में निवद्ध कवि का पद साहित्य भी, भाव, भाषा एवं शैली की दृष्टि से उत्तम है । इन पदों में कवि हृदय की भक्ति-भावना अत्यन्त सरल एवं स्वाभाविक
१ पं० नाथूराम प्रेमी, जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३६३
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३ श्री कस्तुरचन्द कासलीवाल संपादित प्रशस्ति संग्रह, प्रस्तावना, पृ० १२
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