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आलोच्य कविता का मामूहिक पग्वेिग
ने अफवर वादगाह को जैन धर्म का स्वरूप समझाया तथा उसकी मदमावना प्राप्त कर अनेक जैन तीर्य संबंधी फरमान, जीव वध बंध करने के आदेग तथा पुस्तक आदि पर पुरस्कार प्राप्त किये। जहांगीर ने तपगच्छीय विजयमेनमूरि और खन्तरगच्छीय जिनसिंहसूरि को धार्मिक उपाधियां दी। गाहजहां ने भी इन मूरियां के प्रति अपनी सद्भावना बताई। इस सामान्य गान्ति के काल में अन्याय धर्मों में जागृति आई और विपुल साहित्यसर्जना हुई ।
फारसी उन्नति के माथ हिन्दी साहित्य की भी पर्याप्त उन्नति हुई। रहीम, राजा भगवानदास, वीरबल, तुलसी, केशव, विहारी, मतिराम, देव, सेनापति, शिरोमणि मिश्र, वनारसीदास, भूषण आदि इस युग के अच्छे कवियों की अमूल्य भेटों से हिन्दी माहित्य को ऐसा तो स्वर्णिम बना दिया कि उसकी आमा कमी भी कम नहीं हो सकती।
औरंगजेब के शासनकाल में हिन्दी की अवनति हुई, क्योंकि औरंगजेव ने इसे तनिक भी संरक्षण नहीं दिया । किन्तु हिन्दू-राजदरवारों मे तथा अन्यान्य धार्मिक मम्प्रदायों में कवि और उनका साहित्य फूलते-फलते रहे।
इस युग के जैन साहित्य का आधार अपनश का जैन-काल है । अपनग में जैन कवियों द्वारा लिखे गए महापुराण, पौराणिक-चरित-काव्य, रूपक काव्य, कथात्मक ग्रंथ, संधिकाव्य, रासनथ आदि पर्याप्त संख्या में उपलब्ध है। उनके अधिकांग ग्रंथ तीर्यकर या जैन महापुरुपों के चरित्र वर्णन करने में किसी व्रत का महात्म्य बतलाने मे या मत का प्रतिपादन करने में जित हुए। उनकी अभिलापा वास्तव में यह थी कि जैन धर्म के नैतिक और सदाचार सम्बन्धी उपदेश जनसाधारण तक अधिक से अधिक पहुंचे । १ यही कारण है कि इन रचनाओं में धार्मिक आग्रह विनेप है। इन रचनाओं में संसारिक राग के ऊपर विराग को प्रतिष्ठित करने का प्रयत्न किया गया है। २
यद्यपि भारतीय इतिहास का मध्यकाल अगांत और निराना का रहा, फिर भी साहित्यक एवं धार्मिक दृष्टि से यह युग अत्यंत समृद्ध कहा जा सकता है। इस युग की एवं संवर्षपूर्ण परिस्थिति के मध्य मे जैन, शैव, शाक्त, वैष्णवों एवं नायों-संतों की रचनाएं जन-मानस को अनुप्रमाणित करने में सम्पूर्ण साहित्य अपभ्रंश और आदिकाल की परम्पराओं को लेकर चला है, परन्तु सामयिक, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक १ डॉ० मरनामसिंह, “अरुण", राजस्थानी साहित्य-प्रगति और परम्परा, पृ० १२ २ डॉ० आनंद प्रकाश दीक्षित, बेलिक्रिमन रुकमिणी, भूमिका, पृ० २७