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जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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एवं साहित्यक परिस्थितियों वा उसमें भाव, भाषा, शैली, काव्यरूप आदि की दृष्टि से परिष्कार व परिवर्धन अवश्य हुआ है।
निष्कर्षतः सम्पूर्ण भक्तियुग का साहित्य जिसका मुगलकाल की राजनीति और समाज व्यवस्था से घनिष्ट सम्बन्ध रहा है, इन्हीं सब परिस्थितियों के कारण अधिक धार्मिक दृढता के साथ लिखा गया इस युग में यदि इस प्रकार का, भक्ति एवं धर्म प्रधान साहित्य सजित न होता तो संमभवतः अधिकांश भारत का यवनीकरण हो जाता। साहित्य की विशाल धरा पर धर्म सरल एवं सरस होकर जीवन के साय एक हो जाता है। भक्तिकालीन साहित्य और परिस्थितियाँ इस बात का उज्जवल प्रमाण हैं ।