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जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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शिक्षा की कमी और असभ्य समाज के कारण देश का सामाजिक जीवन पतन की ओर जा रहा था। असंयम और मद्यपान ने उन्हें अवनति के गर्त में फेंक दिया था। देश में स्थित प्रत्येक वर्ग के लोग घोर-अन्धकार में पड़े हुए थे। निर्धन और धनवान प्रत्येक के जीवन का प्रत्येक कार्य ज्योतिष के अनुसार ही होता था। १
साधारण जनता में नृत्य और संगीत के प्रति रुचि थी। राजघरानों में नृत्य और संगीत कला अपने चरम रूप में विलास-लीला में योग दे रही थी।
निष्कर्पतः तत्कालीन समाज व्यवस्था की उन्नति के लिए साम्राज्य की ओर से कभी कोई प्रयत्न नहीं हुए। समाज की स्थिति अन्वविश्वास, बहुधर्मिता, निरक्षरता, अरक्षा और अज्ञान से विशखल, दयनीय एवं अशांत थी । काजियों के अमानवीय अत्याचारों में भी समाज त्रस्त बना हुआ था।
साहित्यक पृष्ठभूमि
मुगलों के शासन काल में साहित्य एवं कला की वहत ही उन्नति हई। कुछ सम्राटों की उदासीनता के अतिरिक्त प्रायः सभी सम्राट साहित्य एवं कला के प्रेमी थे। अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ ने सभी धर्मों की स्वतंत्र रचनाओं को खुले वातावरण में पल्लवित होने का सुअवसर दिया । हिन्दी, फारसी, तथा उर्दू साहित्य की पर्याप्त अभिवृद्धि के साथ कला के प्रत्येक अंग ने भी जीवन पाया । इस काल की कविता में भक्ति, वीरता और शृगांर रस आदि का प्रचार विशेषत: मिलता है। अकवर का अन्यान्य धर्मों के विद्वानों के प्रति उदार भाव तथा दार्शनिक-सांस्कृतिक कार्यों में प्रगाढ स्नेह पाकर देश-विदेश के विविध मार्गों से उसके दरबार में अनेक विद्वान आये। अब्दुर्ररहीम खानखाना फारसी के साथ हिन्दी के विद्वान कवि, टोडरमलजी हिन्दू धर्मशास्रों के अच्छे ज्ञाता व लेखक, पृथ्वीराज राठौर, सुयोग्य गायक तथा कवि तानसेन, कवीन्द्राचार्य, सुन्दरदास, पुहकर चिंतामणि, बनवारी, हरिनाथ आदि अकवरी दरवार के कवि थे।
इस समय में श्वेताम्बर, दिगम्बर जैन साधुओं ने भी संस्कृत, प्राकृत और स्वभाषा-लोकभाषा में पर्याप्त साहित्य सर्जन किया । तप-गच्छीय प्रभावक महापुरुष हीरविजयसूरि तथा उनके शिष्य उपाध्याय शांतिचंद्र, स्वरगच्छीय जिनचन्द्रसूरि आदि १डॉ. विश्वेश्वर प्रसाद, भारतवर्प का इतिहास