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________________ ७० आलोच्य कविता का मामूहिक पन्वेिग " जनता के तीन वर्ग जो वास्तव में नाम मात्र से स्वतन्त्र हैं, परन्तु उनकी • जीवन धारा स्वयं स्वीकृत दासता से नहीं के बराबर ही भेद खाती है । कार्यकर्ता, चपरासी, सेवक और व्यापारी, इनका कार्य स्वतन्त्र नहीं था। पारिश्रमिक अत्यल्प था। भोजन और मकान की व्यवस्था दयनीय थी। ये सव सदैव साही काालय के दबाव के गिकार बने रहते थे। यद्यपि व्यापारी कमी कमी धनवान और आहत थे, परन्तु बहुधा अपनी सम्पत्ति गुप्त रखते थे।" १ उच्च और निम्न वर्ग की अपेक्षा समाज में मध्य वर्ग के लोगों की संख्या अत्य. न्त कम थी। उनका जीवन सादा था। साधारण जनता अशिक्षित थी। ब्राह्मणों में पठन-पाठन की प्राचीन पद्घति पूर्ववत थी। धर्म के प्रति आस्था भी वैसी ही थी। भक्ति की भावना समाज के प्रत्येक क्षेत्र में अपना प्रभुत्व जमा चुकी थी। संतों और साधुओं का समाज में आदर होता था। देव मन्दिरों में उपासना-कीर्तन होता रहता था । धर्म की विभिन्न धाराओं-सम्प्रदायों में संघर्प प्रवल था। कवि और समाज सुधारक संत उस संघर्ष को सुलझाने में प्रयत्नशील थे। ___ वर्णाश्रम पर जनता की पूर्ण आस्था थी। स्रियों की दशा शोचनीय थी। पर्दा प्रथा तथा सती प्रथा प्रचलित थी। दहेज प्रथा, छुआछत, बहुविवाह और वालविवाह आदि अनेक कुरीतियाँ उस समय के समाज में वर्तमान थी, जिससे साधारण जनता का जीवन कष्टपूर्ण हो गया था । __ आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी। सामन्त-सरदार और दरवारी लोग सुखी और समृद्ध थे किन्तु शेप जनता की दशा कष्टपूर्ण थी । २ सामाजिक और धार्मिक रीति रिवाजों तया विश्वासों में रूढिवादिता आ गई थी। धार्मिक पुरुषों की भक्ति, उनकी मृत्यु के पश्चात उनके स्मारकों की भी पूजा, अन्धविश्वास और अन्धानुकरण आदि का खूब प्रचलन था । सभी वर्ग-सम्राट से सामान्य जनता तक के अपने पुरुषत्व की अपेक्षा भाग्य ( दैवी शक्ति ) पर अधिक विश्वास करते थे। यह युग धार्मिक अतिविश्वास का युग था। धार्मिक ऐक्य और समन्वय साधने के प्रयत्न भी खूब हुए। नाथ पन्थियों, शैवी कनफटे तथा लिंगायत साधुओं, सूफियों' तान्त्रिकों आदि का तथा दैवी चमत्कारों का जनता पर अटूट प्रभाव था । जनता धन प्राप्ति के प्रलोभनों में पड़कर तथा विविध धर्मों, विश्वासों और तन्त्रों में पड़कर स्वयं पर से विश्वास खो चुकी थी। अतिभौतिक और अभौतिक चमत्कारों के बीच जनता मेड-सी चल रही थी। 1 जगदीशसिंह गहलौत, राजपूताने का इतिहास 2 HiStory of India dy Francis Pelscret
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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