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________________ जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता ६६ और मध्ययुग में जो निर्मित हुआ उस समय भारत के विभिन्न प्रदेशों की ऐतिहासिक दशा प्रायः एक-सी थी ।" १ क्योंकि औरंगजेब के तथा उसके निर्वल उत्तराधिकारियों के अत्याचारों से विवश सजग हिन्दू धर्मात्माओं ने उनके विरुद्ध विद्रोह द्वारा धर्मयुद्ध का आह्वान करके सारे देश में एक नई धार्मिक क्रांति को जन्म दे दिया था । एक ओर जहाँ मुगल हिन्दू जाति और धर्म का आमूल उच्छेदन करना चाहते थे वहां दूसरी ओर हिन्दू धार्मिकता दुगने - चौगुने जोग को लेकर उमड़ पड़ी थी । इस हिन्दू धार्मिकता के साथ उनका विभिन्न साहित्य भी पनपता रहा। यह धार्मिक साहित्य-सृजन का क्रम छोटे या बड़े रूप : १८वीं शती के अन्तिम चरण तक चलता रहा । 'सामाजिक पृष्ठभूमि सम्बन्धित दो शताब्दियों का इतिहास युद्धों और विप्लवों का इतिहास है अतः सामाजिक परिस्थिति भी संतोष कारक नहीं हो सकती । इस राजनैतिक उनहापोह और सामाजिक अव्यवस्था के परिणाम स्वरूप समाज का जीवन स्तर नीचे गिरता गया । ऐश्वर्य और वैभव में विलासिता की प्रधानता स्वतः आ जाती है । अकवर ने तो विलास की इद्दाम लहरों में अपने को संयत रक्जा पर जहाँगीर और शाहजहाँ के व्यक्तित्व में विलास - प्रियता असंतुलित रूप में प्रकट हुई जिसका प्रभाव तयुगीन सामंतों और समाज के अन्य वर्ग पर भी पड़ा। फिर तो " यथा राजा तथा प्रजा 17 के अनुसार साधारण जनता में भी विलास अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया । 4 मुगल कालीन इतिहास के अव्यन के से यह ज्ञात होता है कि मुगल कालीन समाज अनेक वर्गों में विभक्त था । परस्पर उनमें अत्यन्त असमानता थी पेशे और आर्थिक दशा के अनुसार समाज मुख्यतः तीन वर्गों में विभक्त था वस्तुत: इन तीन वर्गों के जीवन में जमीन आसमान का अन्तर था। जहां एक और उच्च वर्ग के लोग दिन-रात मदिरा में डूबे रहते थे वहाँ दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोगों को जीवकोपार्जन के लिए कठिन श्रम करना पड़ता था । साधारण जनता और अधिकारी वर्ग के जीवन स्तर में कुछ कुत्ते और मालिक जैसा अन्तर था। पौष्टिक भोजन, सुन्दर वत्र, निर्वाह योग्य मकान तथा साक्षरता तो निर्धन वर्ग के भाग्य में ही नही । मुगल युग की इन सामाजिक स्थिति के संबंध में पाश्चात्य विद्वान फ्रान्सिस पोल्सक्र ेट अपने ७ वर्षों के अनुभव को अभिव्यक्ति देते हुए लिखता है— 1 Odsbcure Religious Acts, p. 331.
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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