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आलोच्य कविता का सामूहिक परिवेश
को मुसलमान होने से बचाने के लिये इन सुधारकों ने सरल और उदार भावना से पंथ और सम्प्रदायों की रचना की। वर्णाश्रम धर्म, अवतार वाद, वहुदेवो पासना. मूर्तिपूजा, साकारवाद आदि को छोड़ उन्होंने अपनी उपासना विवि मुसलमानों की भांति अत्यन्त सरल वना दी।
प्राचीन परम्परागत भक्ति भावना की रक्षा करने के लिए भागवत् सम्प्रदाय से उद्भुत भक्ति के स्वरूप का प्रचार सगुण भक्ति के सम्प्रदायों ने भी किया। वल्लभ सम्प्रदाय तथा निम्बार्क सम्प्रदाय ने राधा कृष्ण की सरल भाव की उपासना प्रसारित की। हित हरिवंश के राधावल्लभी सम्प्रदाय तथा चैतन्य सम्प्रदाय की प्रेमलक्ष गा भक्ति आदि का प्रचार वढ़ा।
रामानन्द की अपनी दास्य भक्ति से परिपूरित राम भक्ति की धारा सम्पूर्ण भारत में प्रवाहित हुई । सब प्रकार के समाज में इस राम-नाम और राम भक्ति का सम्मान हुआ। ब्राह्मण वर्ग में राम भक्ति के साथ शिवपूजा का महात्म्य भी बढ़ता रहा । राजस्थान में शक्ति की उपासना भी अत्यन्त लोकप्रिय रही।
एक और निर्गुण ब्रह्म, रामकृष्ण, शिव-शक्ति की उपासना हो रही थी तो दूसरी ओर इस्लाम धर्म भी अपने पांव पसार रहा था । अधिकांश हिन्दू नरेशों ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी। तथा उनसे विवाह सम्बन्ध भी जोड़ लिये थे। इधर सूफी साधकों की माधुर्य भावना हिन्दू-मुस्लिम एकता में मध्यस्थी का कार्य कर रही थी।
___ जैन धर्म गुजरात और राजस्थान में केन्द्रित हो गया था। इस धर्म का विशेष प्रचार राजस्थान और गुजरात की वैश्य जाति तक ही सीमित रहा । मध्यकालीन राजस्थानी-गुजराती साहित्य की सम्पन्नता का अधिकांश श्रेय इन्हीं जैन धर्मावलम्बियों को ही है।
इस मध्यकालीन भक्तियुग में धर्म की मात्रा प्रमुख रही है। इसका प्रधान कारण उस समय समग्र देश की ऐतिहासिक परिस्थिति का एक-सा होना है। समस्त भारतीय भापाओं को तत्कालीन धर्मप्रधान साहित्य के पीछे भी यही कारण है । डॉ० शशिभूपण दास गुप्त लिखते हैं
" सभी अद्यतन भारतीय मापाओं के साहित्य की ऐतिहासिक प्रगति की एकात्मता वास्तव में आश्चर्य चकित कर देने वाली है। इस ऐतिहासिक एकता का कारण यही है कि सभी भापाओं के साहित्य का इतिहास प्राचीन