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जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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धार्मिक पृष्टभूमि
यद्यपि मुगल काल में राजनैतिक वातावरण संघर्षपूर्ण एवं अत्यन्त अज्ञात रहा तथापि धार्मिक भावनाएं अक्षुण्ण बनी रहीं। अकबर की धार्मिक नीति को प्रभावित करने वाली पृष्टभूमि भी कुछ ऐसी थी जिससे उसकी धार्मिक मान्यताओं में विविधता का समावेश होगया था । पैतृक धार्मिक सहिष्णुता, उसके शिक्षक अब्दुल लतीफ तथा संरक्षक वैराम खाँ की धार्मिक सहिष्णुता, सूफी विद्वानों के उदार विचारों, राजपूत तथा राजपूत रमणियों के सम्पर्क, विभिन्न धर्माचार्यो, जैनाचार्य हीर-विजयसूरि, भानुचन्द्र उपाध्याय तथा जिनचन्द, सिक्ख गुरू आदि के प्रभावों से अकवर की धार्मिक नीति का निर्धारण हुआ था । वह अपनी धार्मिक समन्वय वृत्ति तया आध्यात्मिकता से प्रभावित होकर राष्ट्र का धार्मिक नेतृत्व करता रहा। किन्तु यह धार्मिक समन्वय अकवर जैसे सम्राट के लिए अपवाद रूप ही है। सामान्यतः तो इस यवन जाति ने भारतीय संस्कृति और धर्म को छिन्न-भिन्न कर दिया। इसके लिए इन सम्राटों ने दान की वृत्ति से, तो कभी साधुता के आवरण में अनेक छलपूर्ण प्रयत्न किये । पवित्र देवमन्दिर ध्वस्त किये गये, अनेक ग्रंथालय अग्नि की लपटों में भस्मीभूत किये गये तथा बहुमूल्य मणिरत्न आत्मसात् कर लिये गये। भारतीय जनता का मवनीकरण भी कम नही हुआ । इन परिस्थितियों में भारतीय जनता के लिए एक ही रास्ता था कि वह अपनी मर्यादाओं में सीमित रहकर जिस किसी तरह अपने पूर्वजों की निधि-अपनी संस्कृति और धर्म की रक्षा करती।
भारतीय संस्कृति, सभ्यता और धर्म से जव इनका किसी भी तरह मेल न खाया तो इनका दानवी अधिकार-पद फूट पड़ा। परिणामतः जैनों और सिक्खों से भी भयंकर संघर्ष चले। समय निकलता गया। प्रत्येक धार्मिक सम्प्रदाय अपने को पुष्ट बनाने के प्रयत्नों में लग गया। पारस्परिक असहिष्णुता तथा तद्जन्य संघर्ष भी होते रहे। असहिष्णुता और परस्पर में एक-दूसरे को छोटे-बड़े सिद्ध करने के लिए अनेक शास्रार्थ भी होने लगे। परस्पर का लक्ष्य एक-दूसरे को गिराना ही हो गया। इस विपमता तथा कटुता को वात्सल्य एवं मैत्री में परिवर्तित करने के लिए संतों ने अपने आदर्श मार्ग द्वारा प्रशस्य प्रयत्न किये।
संतों की भक्ति भावना और नीति प्रोज्ज्वल लहरें सर्वत्र उठने लगीं। निरंजननिर्गुण ब्रह्म की उपासना प्रिय वन चली। कबीर-पंथ, द्वद्-पंथ महानुभाव-पंय आदि पंथ पल्लवित हुए । किन्तु इनका प्रभाव निम्नश्रेणी की जनता तक ही सीमित रहा । इन संत कवियों ने अपनी वाणियों द्वारा मनुष्यत्व को सर्वोपरि रखा। भारतीय जनता