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जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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लोग. क्योंकि इस अपमान जनक परिस्थिति के गरल को न पी सके अतः अपनी संस्कृति तथा धर्म की रक्षा हेतु संगठित होने के लिये प्रयत्नशील हुये। राजनैतिक पृष्ठभूमि
___ अपने गौरव और स्वाभिमान की रक्षा हेतु देश के विभिन्न प्रान्तों की भांति गुजरात और राजस्थान में इसके प्रतिशोध के लिये स्वतंत्र हिन्दू शासकों ने सभी छोटेछोटे शासकों को एकता के सूत्र में वाँधने का प्रयास किया। गुजरात में कवियों ने भी देश के स्वाभिमान तथा जाति के गौरव की रक्षा के लिये हिन्दू जनता के हृदय में चेतना जागृत करने को प्रयास किया। राजस्थान में इसकी पताका राणा-साँगा ने संभाली। राणा सांगा के नेतृत्व में एक बार पुनः राजस्थान अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए एकता के सूत्र में बंधा और खानवा के समीप संवत १५८४ में वावर से भयंकर युद्ध किया । दुर्भाग्यवश विजय वावर - के हाथ लगी और सं० १५८५ में राणा सांगा की मृत्यु हो गई। अब राजनैतिक एकता भूली-विसरी वात हो गई, राष्ट्रीय भावना का कहीं कोई स्थान नहीं रहा । आंतरिक गृहकलह, विशृखलता एवं विनाश से उत्पन्न अराजकता का सर्व बोलबाला दिखने लगा।
संवत् १६१३ में सम्राट अकवर सिंहासनारूढ हुआ । वह अपनी नीतिकुशलता के कारण धीरे धीरे सम्पूर्ण भारत का अधिपति बन बैठा। संवत्'१६१६ में उसने आमेर के राजा मारमल की पुत्री के साथ विवाह किया । आमेर के साथ ही जोधपुर, वीकानेर, जैसलमेर, आदि की राजकुमारियां भी मुगल हरम में पहुचीं। १
भारत के इतिहास में मुगल सम्राटों ने कई दृष्टियों से एक युगान्तर ही ला दिया । इन मुगल सम्राटों ने अपने लगभग २०० वर्षों में शासन, व्यवस्था, रहन-सहन आदि जीवन के समस्त अंगों पर गहरा प्रभाव डाला। मुगलों के पूर्व खिलजी तुगलड आदि आतताइयों, आक्रमकों एवं लुटेरों से भारतीय जनता पूर्ण परिचित थी। मुगल नम्राटों में कुछ अंशों में हृदय का स्नेह और आत्मा का स्वर भारतीय जनता ने अनुभव किया। भले ये स्वर्णयुग या रामराज्य स्थापित न कर सके हों पर सार्वत्रिक रूप से इस वंश ने संतोपकारक प्रगति अवश्य की । अपने पूर्वजों की अपेक्षा सम्राट अकबर ने तो अनेक विवेकपूर्ण कार्य किये । उसने राजनीति, धर्म, रहन-सहन एवं साहित्यक अभिरुचि आदि के साथ अन्यान्य क्षेत्रों में भी अत्यन्त उदारता-पूर्ण नीति से कामलिया। मुगल काल का यह स्वर्गकाल मात्र अकबर की शासन व्यवस्था में ही रहा ।
१ डॉ० ईश्वरी प्रसाद, मध्ययुग का संक्षिप्त इतिहास