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आलोच्य कविता का सामूहिक परिवेश
अछूते न रहे—वे भी यहाँ के निवासी थे और अपने पड़ोसियों से पृथक् नहीं रह सकते थे । जैन-जगत् में इस परिवर्तन की प्रक्रिया सर्वागीण हुई ।" "
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि :
सनहवीं और अठारहवीं शती मुगल साम्राज्य के उत्कर्ष और अपकर्ष को कहानी है | मुगल सम्राट अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ, औरंगजेव और उनके उत्तराधिकारियों का यह युग रहा है । अपने दो सौ वर्षों के शासनकाल में मुगलों ने भारतवर्ष की सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, साहित्यिक आदि दशाओं पर अपनी छाप लगा दी । साहित्य एवं कला के क्षेत्र भी मुगलों के प्रभाव से अछूते नहीं रह सके । हिन्दू और मुगलों के इस सामीप्य ने भारतीय समाज एवं राजनीति को एकनया रूप दिया । अतः मुगल काल की भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का विभिन्न दृष्टिकोणों से अवलोकन अपेक्षित है ।
मुगल युग में गुजरात की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि :
मुगल सत्ता के पूर्णतया जम जाने पर सामान्यतया सर्वत्र सुख-शांति स्थापित होने लगी थी । १६वीं शती में गुजरात में भी शांति का वातावरण रहा । वि० सं० १५६३ में बहादुर शाह की मृत्यु के पश्चात् पुनः वातावरण अशांत-सा होने लगा था किन्तु संवत् १६२६ में अकवर के कुशल नेतृत्व में गुजरात में पुन: शांति स्थापित हो गई । गुजरात का यह शांत वातावरण औरंगजेब के शासनकाल तक बना रहा । तत्पश्चात् कुछ विक्षेपों के कारण अधिक अनुकूल परिस्थितियों के अभाव में भी गुजराती भाषा साहित्य का विकास होता रहा ।
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औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् तो गुजरात का वातावरण पुनः क्षुब्ध हो उठता है । सरदारों, सूवेदारों और मराठों की स्वेच्छाचारिता बढ़ रही थी । युग पलट रहा था, देश खंड-खंड होने जा रहा था । संवत् १७८६ में गुजरात के बड़ौदा में गायकवाड राज्य का प्रस्थापन इमी का परिणाम है । केन्द्रीय शासन शिथिल होता जा रहा था । मुगल सम्राट राव उमराव वर्ग के हाथों की कठपुतली बन रहा था । इस वातावरण का प्रभाव गुजरात के लोकजीवन और साहित्य पर भी पडा है । सर्वत्र अव्यवस्था और अशांति के कारण इस काल का लोकजीवन और साहित्य कुंठित-सा प्रतीत होता है ।
मुगल युग की इन विषम परिस्थितियों में हिन्दू जनता के हृदय में गौरव, अभिमान और उत्साह के लिए कोई स्थान नहीं था । उनके सामने हो उनके देव' मन्दिर गिराये जाते थे, देवमूर्तियों और पूज्य महापुरुषों का अपमान होता था और ये १. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ० ६३