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________________ ६४ आलोच्य कविता का सामूहिक परिवेश अछूते न रहे—वे भी यहाँ के निवासी थे और अपने पड़ोसियों से पृथक् नहीं रह सकते थे । जैन-जगत् में इस परिवर्तन की प्रक्रिया सर्वागीण हुई ।" " ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : सनहवीं और अठारहवीं शती मुगल साम्राज्य के उत्कर्ष और अपकर्ष को कहानी है | मुगल सम्राट अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ, औरंगजेव और उनके उत्तराधिकारियों का यह युग रहा है । अपने दो सौ वर्षों के शासनकाल में मुगलों ने भारतवर्ष की सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, साहित्यिक आदि दशाओं पर अपनी छाप लगा दी । साहित्य एवं कला के क्षेत्र भी मुगलों के प्रभाव से अछूते नहीं रह सके । हिन्दू और मुगलों के इस सामीप्य ने भारतीय समाज एवं राजनीति को एकनया रूप दिया । अतः मुगल काल की भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का विभिन्न दृष्टिकोणों से अवलोकन अपेक्षित है । मुगल युग में गुजरात की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि : मुगल सत्ता के पूर्णतया जम जाने पर सामान्यतया सर्वत्र सुख-शांति स्थापित होने लगी थी । १६वीं शती में गुजरात में भी शांति का वातावरण रहा । वि० सं० १५६३ में बहादुर शाह की मृत्यु के पश्चात् पुनः वातावरण अशांत-सा होने लगा था किन्तु संवत् १६२६ में अकवर के कुशल नेतृत्व में गुजरात में पुन: शांति स्थापित हो गई । गुजरात का यह शांत वातावरण औरंगजेब के शासनकाल तक बना रहा । तत्पश्चात् कुछ विक्षेपों के कारण अधिक अनुकूल परिस्थितियों के अभाव में भी गुजराती भाषा साहित्य का विकास होता रहा । 1 औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् तो गुजरात का वातावरण पुनः क्षुब्ध हो उठता है । सरदारों, सूवेदारों और मराठों की स्वेच्छाचारिता बढ़ रही थी । युग पलट रहा था, देश खंड-खंड होने जा रहा था । संवत् १७८६ में गुजरात के बड़ौदा में गायकवाड राज्य का प्रस्थापन इमी का परिणाम है । केन्द्रीय शासन शिथिल होता जा रहा था । मुगल सम्राट राव उमराव वर्ग के हाथों की कठपुतली बन रहा था । इस वातावरण का प्रभाव गुजरात के लोकजीवन और साहित्य पर भी पडा है । सर्वत्र अव्यवस्था और अशांति के कारण इस काल का लोकजीवन और साहित्य कुंठित-सा प्रतीत होता है । मुगल युग की इन विषम परिस्थितियों में हिन्दू जनता के हृदय में गौरव, अभिमान और उत्साह के लिए कोई स्थान नहीं था । उनके सामने हो उनके देव' मन्दिर गिराये जाते थे, देवमूर्तियों और पूज्य महापुरुषों का अपमान होता था और ये १. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ० ६३
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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