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________________ जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता और शनुजय की यात्रा के लिए भी इनका आगमन बराबर होता था।' इन भट्टा. रक जैन कवियों का साहित्य भी विशेपतः राजस्थान के विभिन्न जैन भण्डारों में (रिखवदेव, डूंगरपुर, सागवाडा एवं उदयपुर) में विपुल परिमाण में उपलब्ध है ।" इन भट्टारक संतों ने तो हिन्दी को राष्ट्रभापा, बनाने का स्वप्न ८ वीं शताब्दी से पूर्व ही देखना प्रारम्भ कर दिया था, मुनि रामसिंह का 'दोहा पाहुड' हिन्दी माहित्य की एक अमूल्य कृति है जिसकी तुलना में भापा-साहित्य की बहुत कम कृतियाँ आ सकेंगी । महाकवि तुलसीदासजी को तो १७ वीं शताब्दी में भी हिन्दी भाषा में "रामचरित मानस" लिखने में झिझक हो रही थी किन्तु इन जैन सन्तों ने उनसे ८०० वर्ष पहले ही साहस के साथ प्राचीन हिन्दी में रचनायें लिखना प्रारम्भ कर दिया था । गूर्जर भट्टारक कवियों की भी हिन्दी रचनाएं १५ वीं शती से प्राप्त होती हैं । १५ वीं शती के ऐसे गुर्जर भट्टारकों में भट्टारक सकल कीति और ब्रह्मजिनदास उल्लेखनीय हैं। ये संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित थे। फिर भी इन्होंने लोकभाषा के माध्यम से राजस्थान और गजरात में जैन-साहित्य और संस्कृति के निर्माण में अपूर्व योग दिया । ये अणहिल पुर पट्टण के रहने वाले थे।३ इनके शिष्य ब्रह्म जिनदास भी पाटण निवासी हबड जाति के श्रावक थे । इन्होंने ६० से भी अधिक रचनाएं लिखकर हिन्दी साहित्य की श्री-वृद्धि की। इन रचनामों में रामसीतारास, श्रीपाल रास, यशोधररास, भविष्यदत्तरास, परमहंसरास, हरिवंशपुराण, आदिनाथ पुराण मादि विशेष उल्लेखनीय हैं। इनकी भाषा शैली की दृष्टि से आध्यात्मिक रास "परमहसरास" से एक उदाहरण दृष्टव्य है पापाण मांहि सोनो जिम होई, गोरस मांहि जिमि घत होई। तिल सारे तैल वसे जिमि भंग, तिम शरीर आत्मा अभंग ॥ काण्ठ मांहि आगिनि जिमि होई, कुसुम परिमल मांहि नेह । नीर जलद सीत जिमि नीर, तेम आत्मा वस जगत सरीर ।। १६ वीं शती के भट्टारक कवियों में आचार्य सोमकीति, भट्टारक ज्ञानभूषण, तथा भट्टारक विजयकीति विशेष उल्लेखनीय हैं। आचार्य सोमकीर्ति का सम्बन्ध काण्ठा संघ के नन्दनीतट शाखा से था । इनका विहार विशेषतः राजस्थान और गुजराज में रहा । इनकी रचनाओं में "यशोधर रास" विशेष महत्व की रचना है जिस पर गुजराती प्रभाव स्पष्ट लक्षित है । भट्टारक ज्ञानभूषण मूल गुजरात के निवासी १. भट्टारक सम्प्रदाय, विद्याधर जोहरापुरकर, पृ० ६, ७ २. राजस्थान के जैन संत, डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल, प्रस्तावना ३. वही, पृ० १ ४. वही, १० २३
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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