________________
आलोच्य कविता का सामूहिक परिवेश
इस प्रकार एक ही सामान्य साहित्य को हिन्दी, राजस्थानी अथवा गुजराती सिद्ध करने के प्रयत्न वरावर होते रहे हैं । राजनैतिक कारणों से हिन्दी तथा राज. स्थानी से गुजराती के अलग हो जाने और उसके स्वतन्त्र रूप से विकसित हो जाने के पश्चात भी गुजराती कवियों का हिन्दी के प्रति परम्परागत प्रेम बना रहा । यही कारण है कि वे स्वभाषा के साथ-साथ हिन्दी में भी रचनाएं करते रहे । हिन्दी की यह दीर्घ कालीन परम्परा उसकी सर्वप्रियता और सार्वदेशिकता सूचित करती है।
यहाँ तक कि इस परम्परा के निर्वाह हेतु अथवा अपने हिन्दी प्रेम को अभि व्यक्त करने के लिये, गुजराती कवियों ने अपने गुजराती ग्रन्थों में भी हिन्दी अवतरण उद्धृत किये हैं। उदाहरणार्थ नयसुन्दर के, रूपचन्द, कुंवरदास, नलदमयंती रास, गिरनार उद्धार रास, सरसुन्दरी रास, ऋषभदास के कुमारपाल रास, हीर-विजयसूरि रास, हितशिक्षा रास. तथा समयसुन्दर के न नदमयंती रास आदि द्रष्टव्य है । ऋषभदास की कृतियों से पता चलता है कि उस समय व्यापार के लिए भारत में आने वाले विदेशी-अंग्रेज आदि मुगल सम्राटों से उर्दू या हिन्दी में व्यवहार करते थे।
जैन भाषा में कर्मप्रचार तथा साहित्य-सृजन जैन कवियों का उत्लेखनीय कार्य रहा है । इन कवियों का विहार राजस्थान एवं गुजरात में अधिक रहा । गुजराा में हिन्दी भाषा के प्रभाव और प्रचार ने इन्हें आकर्षित किया। फलतः हिन्दी भापत में इनके रचित छोटे-बड़े ग्रन्थ १५ वीं शती से आजतक अच्छे परिमाण में प्राप्त होते रहे हैं। इन्होंने अपनी कृतियों में भारतीय साहित्य की अजस धारा बहायी है तथा अपने आध्यात्मिक प्रवचनों, गीतिकाव्यों तथा मुक्तक छन्दों द्वारा जन-जीवन के नैतिक धरातल को सदैव ऊँचा उठाने का प्रयत्न किया है। ये जैन संत विविध भाषाओं के जाता होते हुए भी इन्हें भाषा विशेप से कभी मोह नहीं रहा। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती आदि सभी भाषाएं इनकी अपनी थीं, प्रान्तवाद के झगड़े में ये कभी नही उतरे । साहित्य रचना का महद् उद्देश्य-आत्मोन्नति नौर जनकल्याण-केन्द्र में रखकर अपनी आत्मानुभूति से जन-मन को ये परिप्लावित करते रहे। दिगम्बर कवियों के साहित्य केन्द्र :
राजस्थान का वागड़ प्रदेश (विशेषतः डूंगरपुर, सागवाडा) गुजरात प्रान्त से लगा हुआ है । अत: गुजरात में होने वाले भट्टारकों के मुख्य केन्द्र नवसारी, सूरत, भडौच , जावूनर, घोया तथा उत्तर गुजरात में ईडर आदि थे । सौराष्ट्र में गिरनार