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________________ ५२ आलोच्य कविता का सामूहिक परिवेश आदि सैकड़ों प्रकार की रचनाएं उपलब्ध है, जिन पर प्रकरण ६ में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। (४) विविध परंपराओं के निर्वाह की प्रवृत्ति : जैन कृतियों में साहित्य और समाज की विविध परंपराओं का निर्वाह हुआ है । संक्षेप में कुछ परम्पराओं का यहाँ उल्लेख किया जाता है- . (अ) अध्ययन-अध्यापन और ग्रंथ निर्माण की परम्परा : - आगमों के अध्ययन, जैनेतर साहित्य के अनुशीलन और मौलिक ग्रन्थों के प्रणयन की प्रवृत्ति के कारण जैनेतर विषय भी इन कवियों के विषय बने हैं और उनका सम्यक्ज्ञान प्रस्तुत हुआ है । (ब) ज्ञान-भण्डार संस्थापन परम्परा : __ज्ञान के अनेक भण्डारों की स्थापना, सुरक्षा तथा उनके सम्यक प्रबन्ध की परम्परागत प्रवृत्ति के कारण जैन-भण्डारों में जनेतर कृतियाँ भी सुरक्षित रही हैं तथा अपने विपुल साहित्य को नष्ट होने से बचाया है । (क) लोकभाषा अगीकरण की परम्परा : साहित्यिक भाषा के साथ लोकभाषा में भी रचनाएं करने की प्रवृत्ति अधिकांश कवियों में देखने को मिलती है । लोकभाषा के प्रति रुचि दिखाकर इन कवियों ने विभिन्न जनभाषाओं के विकास और संवर्द्धन में अपूर्व योग दिया है। जनभाषाग्रहण की प्रवृति से जैन साहित्य की लोकप्रियता भी बढ़ी। (ड) ग्रंन्य लेखन और प्रतिलिपि करने-कराने की प्रवृत्ति से अनेक प्रतिलिपिकारों की आजीविका भी-चलती थी। ऐसे अनेक प्रतिलिपिकार आज भी अहमदाबाद, पाटण, बीकानेर तथा अन्य स्थलों पर है जो अपनी आजीविका इसी कार्य पर निर्भर मानते हैं । एक ही प्रति की अनेक प्रतिलिपियां विभिन्न भण्डारों और निजी संग्रहालयों में होती रही है। पाठविज्ञान तथा उसके शोधार्थियों के लिये यह लेखन-पम्परा बड़ी महत्व की वस्तु है । (इ) जैन धर्म के प्रचार की प्रवृत्ति भी विभिन्न छोटी तथा बड़ी मधुर कथात्मक शैली .. में होती है। इन कथाओं में जैन दर्शन सरस शैली में उतरा है । इनका मुख्य. उद्देश्य चरित्र निर्माण, अहिंसा, कर्मवाद और आदर्शवाद को प्रस्थापित करना रहा है । उक्त समी परम्पराओं ने जैन साहित्य में जीवन उड़ेल दिया है । (ई) साधु या सन्यासी बनने की परम्परा का निर्वाह भी जैन समाज में वरावर होता है। भारतीय प्रजा का एक वर्ग परमज्ञान की बातें और संसार की टीकाएं करने
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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