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जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
निवेंद और शम की भावना भी इस साहित्य का प्राण है । अस्तु, हिंसा से दूर, सुख, सोहार्द्र एकता, त्याग और आनन्द की भाव लहरों में मानवता को अवगाहन कराने वाला साहित्य अपने में सर्वांश सुन्दर है ।
जैन साहित्य की मुख्य प्रवृत्तियाँ
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(१) साहित्यिकता के साथ लोक भाषामूलक साहित्य सृजन की प्रवृत्ति :
अधिकांश जैन कवियों ने स्वान्तः सुखाय लिखा । ग्राम-ग्राम तथा नगर-नगर घूमकर लोकोपकारक तथा आध्यात्मिक उपदेशों से पूर्ण वाग्धारा बहाना और लोगों की अपनी भाषा में साहित्य निर्मित करना भी इनका जीवन-लक्ष्य था । यही कारण है कि एक ओर इनमें विभिन्न साहित्यिक विधाओं और तत्वों का समावेश है, तो दूसरी ओर इनमें लोकभाषा और बोलियों का सरल प्रवाह है । इसी कारण इनके काव्य में लोकसंस्कृति भाषा और साहित्य के उन्नायक तत्व सहज ही समाहित हो गये हैं ।
(२) विपय वैविध्य :
जैन कवियों के इस विशाल साहित्य में सामाजिक, धार्मिक, साहित्यिक तथा ऐतिहासिक काव्यों के साथ लोक आख्यानक काव्यों का भी सृजन हुआ है । रामायण और महाभारत के कथानकों का निर्वाह भी इन कवियों ने बड़ी कुशलता से किया है । उदाहरणार्थ ऐसी रचनाओं में द्रोपदी चौपाई, नेमिनाथ फागु, पांडवपुराण, लवकुश छप्पय, सीताराम चौपाई, सीता आलोथणा, हनुमन्त कथा आदि काव्यों को लिया जा सकता है । इनके अतिरिक्त, जैन पौराणिक वार्ताएं, लोकवार्तामूलक कथाएं, कथासंग्रह, पूजासंग्रह, जीवनचरित्र, गुर्वातलियाँ, भक्तिकाव्य, तीर्थमालाएं, सरस्वतीस्तुति, गुरुभक्ति आदि विषयों पर आकपंक, कवित्वपूर्ण, आलंकारिक काव्यखण्ड, तीर्थंकरों और महापुरुषों की स्तुतियाँ, स्तवन, देववंदन, अन्य स्वतन्त्र कृतियाँ, सार्वजनीन कृतियाँ, भाववाची गीतों आदि का माधुर्य वहा है । सुललित सुभाषित, उपदेशामृत से आपूर्ण काव्यखण्डों के मीठे स्रोत भी बहे हैं । विविध ढालों और रागरागनियों का सुमधुर गुंजार भी सुनाई देता है । विषय वैविध्य की दृष्टि से यह साहित्य अत्यन्त समृद्ध कहा जा सकता है । अतः इनमें मात्र धार्मिक प्रवृत्ति ही नहीं, मौलिक सर्जनशक्ति स्वतंत्र कल्पनाशक्ति और शब्द संघटन आदि का समाहार है । (३) काव्य रूपों में वैविध्य :
काव्य रूपों में भी इस साहित्य ने अपना वैविध्य प्रस्तुत किया है | रास, चोपाई, वेलि, चौढालिया, गजल, छन्द, छप्पय, दोहा, सवैया, विवाहलो, मंगल, रागमाला, पूजा, सलोक, पद, वीसी, चौवीसी, वावनी, शतक, फाग, वारहमासा, प्रबंध, संवाद