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________________ आलोच्य कविता का सामूहिक परिवेश अध्यात्म की चर्चा, भोगों, इन्द्रिय-विषयों का विरोध भी साम्प्रदायिक और धार्मिक है तथा ललित और उत्तम साहित्य में सम्मिलित नहीं किया जा सकता, तो हम भक्ति कालीन साहित्य के स्तम्भ कबीर, सूर और तुलसी के साहित्य को भी निरा धार्मिक एवं साम्प्रदायिक कहकर क्या स्वयं के बुद्धिविवेक के दिवालियापन का परिचय न देंगे। साम्प्रदायिक साहित्य वह है जिसमें वाह्याडम्बर, निष्प्राण अति माचार तथा क्रियाकाण्ड आदि की कट्टरता के साथ विवरण प्रधान नीरस चर्चा मात्र हो । यद्यपि ऐसे ग्रन्थ सभी धर्मों में हैं, परन्तु हम उन्हें ललित साहित्य के अन्तर्गत नहीं लेते, वे सामान्य साहित्य में ही आते हैं। वस्तुतः उत्तम साहित्य वही है जो क्षणिक सस्ता मनोरंजन न देकर शाश्वत सत्य का जो शिवं एवं सुन्दरम् से अभिमण्डित हो, उद्घाटन कर सके" ।' इस प्रकार इस साहित्य के प्रति उपेक्षा का माधार निर्मूल ही है। . "कई रचनाएं ऐसी भी है कि जो धार्मिक तो हैं, किन्तु उनमें साहित्यिक सरसता बनाये रखने का पूरा प्रयास है। धर्म वहाँ कवि को केवल प्रेरणा दे रहा है। जिस साहित्य में केवल धार्मिक उपदेश हो, उससे वह साहित्य निश्चित रूप से भिन्न है। जिसमें धर्म-भावना प्रेरक शक्ति के रूप में काम कर रही हो और साथ ही हमारी सामान्य मनुष्यता को आंदोलित, मथित और प्रभावित कर रही हो, इम दृष्टि से अपभ्रश की कई रचनाएँ जो मूलतः जैन धर्म भावना से प्रेरित होकर लिखी गई हैं, निःसन्देह उत्तम काव्य हैं । धार्मिक प्रेरणा या आध्यात्मिक उपदेश होना काव्यत्व का वाधक नहीं समझा जाना चाहिए । धार्मिक साहित्य होने मात्र से कोई रचना साहित्यिक कोटि से अलग नहीं की जा सकती। यदि ऐसा समझा • जाने लगे तो तुलसीदास का "राम चरित मानस" भी साहित्य क्षेत्र में आलोच्य हो जायगा । इस प्रकार मेरे विचार से सभी धार्मिक पुस्तकों को साहित्य के इतिहास में त्याज्य . नहीं मानना चाहिए।" इस प्रकार आचार्य शुक्ल का मत आज नवीन तथ्यों के प्रकाश में महत्वहीन सिद्ध हो चुका है । वस्तुतः धर्म और आध्यात्मिकता तो साहित्य के मूल में उसकी दो प्रेरक शक्तियों का काम करते हैं । अतः जैन कवियों की कृतियों को धार्मिक मानकर उनके प्रति उपेक्षा, सेवा अथवा भूला देना भारतीत चिन्तना और उसकी अमूल्य सम्पदा के प्रति घोर अन्याय करना है। ___ इस साहित्य का मूल स्वर धर्म है, फिर अधिकांश कवियों ने इसे असाम्प्रदायिक बनाने का प्रयत्न किया है। ऐसे साहित्य के मूल में त्याग और शान्ति है । १. साहित्य संदेश, जून, १९५६, क १२.५० ४७४, श्री रवीन्द्रकुमार जैनका लेख ।। २. हिन्दी साहित्य का आदिकालः आ० हजारी प्रसाद द्विवेदी, पृ० ११-१३ ।।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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