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________________ ४६ आलोच्य कविता का सामूहिक परिवेश अनेकांतवाद है, सभी आध्यात्मिक ( ५ ) जैन धर्म का प्रमुख सिद्धांत प्रश्नों के समाधान की कुरुजी स्याद्वाद है । (६) अहिंसा जीवन की परिपूर्णता' है । (७) सत्य, क्षमा आदि दश धर्मो का विवेचन सद्भावपोषक है-वह मानवता निर्मित करने वाला है । इसका परिग्रह प्रमाण मन्त्र समाज सत्तावाद के सारतत्व का कुछ अशों में समर्थक है । आलोच्य युगीन जैन गुर्जर कवियों पर इस जैन दर्शन की अमिट छाप है । २. जैन साहित्य का स्वरूप, महत्त्व तथा मुख्य प्रवृत्तियाँ : स्वरूप और महत्व : जैन साहित्य की आधारशिला धर्म है, अतः इस साहित्य के स्वरूप-निर्धारण में धर्म-भावना का ध्यान रखना होगा । यों तो सम्पूर्ण विश्व के साहित्य के मूल में निश्चित रूप से धार्मिक भावना रही है ओर इस दृष्टि से सम्पूर्ण विश्व का साहित्य धर्ममूलक ही है । “धर्म से साहित्य का अविच्छेद्य सम्बन्ध है । साहित्य से धर्म पृथक् नहीं किया जा सकता | चाहे जिस काल का साहित्य हो, उसमें तत्कालीन धार्मिक अवस्था का चित्र अंकित होगा ।" " धर्म की भाँति ही साहित्य मानव को सर्वांगपूर्ण सुखी और स्वाधीन बनाने का प्रयत्न करता है । जैन साहित्य में इस प्रकार की मानव-हित- विधायिनी प्रवृत्तियाँ बहुलता से प्राप्त हैं । इसमें मानवार्थ मुक्ति का संदेश है, उसे आत्म स्वातन्त्र्य प्राप्ति का मार्ग सुझाया गया है तथा अनेक अध्यात्म-परक बहुमूल्य प्रश्नों पर विचार किया गया है । महापुरुषों के वीरता, साहस, धैर्य, क्षमाप्रवणता एवं लोकोपकारिता से ओत-प्रोत जीवन वृत्त प्रांजल भाषा एवं प्रसाद गुण युक्त शैली में निवद्ध है । इस प्रकार के चरित्र ग्रन्थ मानव समाज के लिए जीवन-संवल एवं मार्ग-दर्शक वनकर आये हैं । यद्यपि विषय चयन में जैन साहित्यकार सदा एक से रहे हैं तथापि इनकी भावोमियों के अभिव्यक्ति कौशल में अपनी-अपनी छाप है । ये यथावसर सामाजिक एवं राजनैतिक दशाओं का चित्रण भी करते गये हैं। जिसके विषय में नाथूराम "प्रेमी" का कथन है, "हिन्दी का जैन साहित्य भी अपने समय के इतिहास पर बहुत कुछ प्रकाश डालेगा । इतिहास की दृष्टि से भी हिन्दी का जैन साहित्य महत्व की १. जीवन और साहित्य : डॉ० उदयभानुसिंह पृ०६७ २. हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, पृ० ४-५ -
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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