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________________ ४८ आलोच्य कविता का सामूहिक परिवेश शासक वर्ग के अत्याचारों के विरोध में भी इन्होंने बड़े सशक्त एवं प्रभावक कवि व्यक्तित्व का परिचय दिया है । व्यक्ति, समाज एवं देश की ऐक्य-शृंखला धर्म एवं चरित्र पर टिकी हुई है । धर्म और चरित्र मानव में अभय की स्थिति पैदा करते हैं। इन दो प्रवल सहयोगियों को पाकर मानव जीवन भर संकटों से जूझता हुआ भी अपनी मानवता की पराजय कभी स्वीकार नहीं करता । "धार्मिक नेताओं एवं आन्दोलनों से जनता जितनी अधिक प्रभावित होती है उतनी कदाचित् राजनैतिक एवं अन्य प्रकार के नेताओं से नहीं होती । धर्म की महत्ता और सत्ता में स्थायित्व विशेप दृढ़ होता है । हमारे आन्तरिक जीवन से यदि किसी विषय का घनिष्ठ सम्बन्ध है तो वह पहले धार्मिक विषय है । यही कारण है कि धर्म हमारे जीवन पर अधिपति-सा होकर स्थिरता और दृढ़ता के साथ शासन करता रहता है। लोक और परलोक दोनों को साधने वाला ही सच्चा धर्म है । अर्थात् लौकिक जीवन में सदाचारिता का पाठ पढ़ाता हुआ परलोकाभिमुख बनाये रखने वाले म के इन दोनों पक्षों का जैन साहित्य में सदैव 'निर्वाह हुआ है। जैन कवियों ने भक्ति, वैराग्य, उपदेश, तत्व निरूपण आदि विषयक रचनाओं में • मानव की चरम उन्नति, लोकोद्धारक एवं काव्य-कला की निधारा वहाई है ।। ___ श्वेताम्बर तथा दिगम्बर कवियों ने अपनी कृतियों के माध्यम से अनेक विषयों पर अनेक रूपों में प्रकाश डाला है । ये सब विषय मात्र धार्मिक नहीं, लोकोपकारक - भी हैं । साहित्यिक रचनाओं के अतिरिक्त जैन साहित्य में व्याकरण, छन्द, अलंकार, वैद्यक, गणित, ज्योतिप, नीति, ऐतिहासिक, सुभाषित, बुद्धिवर्धक, विनोदात्मक, कुव्यसन निवारक, शिक्षाप्रद, औपदेशिक, ऋतुपरक, सम्वादात्मक तथा लोकवार्तात्मक आदि अनेक प्रकार की रचनाएँ प्राप्त हैं। जैन-गुर्जर-कवियों के साहित्य में चार प्रकार का साहित्य उपलब्ध होता (क) तात्विक ग्रन्थ (सैद्धान्तिक ग्रन्थ)। (ख) पद, भजन, प्रार्थनाएँ आदि। . (ग) पुराण, चरित्र आदि । (घ) कथादि व पूजा-पाठ । उच्चश्रेणी के कवियों का क्षेत्र सदैव आध्यात्मिक रहा है। अतः साधारण जनता इनके काव्य का महत्व नहीं समझ सकी। चरित्र या कथा-ग्रन्थों द्वारा भक्तिरस.को बहाने का कार्य बहुत कम हुआ है। सामान्य जनता इसी में रम सकती थी। १. हिन्दी साहित्य का इतिहास : डॉ० रसाल, पृ० १४ -
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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