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आलोच्य कविता का मामूहिक परिवेश ।
दिगम्बर मान्यता:
दिगम्बर भी थोड़े बहुत अतर के साथ लगभग इन्हीं कारणों को सम्प्रदाय भेदु । का मूल मानते हैं । लेकिन कया प्रसंग भिन्न है। भगवान महावीर वाणी का संकलन प्रथम इन्द्रभूति गणधर ने किया फिर क्रमशः सुधर्मास्वामी, जम्बूस्वामी बौर इनसे अन्य मुनियों ने महावीर स्वामी का अध्ययन किया। यह परम्परा महावीर के पश्चात् - भी चलती रही। तदनन्तर पाँच श्रुतकेवली हुए जो अंग और पूर्वो के ज्ञाता थे। भद्रवाहु अंतिम श्रुतकेवली थे । महावीर स्वामी से वासठ वर्ष पश्चात् जम्बूस्वामी
और उनसे सौ वर्ष पश्चात् भद्रवाह का समय निश्चित है। इस प्रकार दिगम्बर मान्यता में महावीर के पश्चात् एक सी वासठ वर्ष तक महावीर वाणी के समस्त अंगों और पूर्वो का अस्तित्व रहा । भद्रबाहु का समय ही दिगम्बर मोर श्वेताम्बर भेद का समय, दोनों सम्प्रदायों को मान्य है।
धीरे-धीरे इन दोनों सम्प्रदायों में भिन्नता प्रदर्शित करने वाली आचार-विचार सम्बन्धी अनेक बातें आ गई हैं । श्वेताम्वर सम्प्रदाय की मान्यताएँ इस प्रकार हैं
स्त्रीमुक्ति, शूद्रमुक्ति, सवस्त्रमुक्ति, ग्रहस्थ दशा में मुक्ति, तीर्थंकर मल्लिनाथ स्त्री थे, महावीर का गर्भहरण, शूद्र के घर से मुनि बाहार ले सकता है, भरत चनवर्ती को अपने घर में कैवल्य प्राप्ति, ग्यारह अंगों का अस्तित्व, मुनियों के चौदह उपकरण, केवली का कवलाहार, केवली का नीहार, अलंकार तथा कांछीवाली प्रतिमा का पूजन, महावीर का विवाह-कन्या उत्पत्ति, साधु का अनेक घरों से भिक्षा लेना, मल्देवी का हाथी पर चढ़े हुए मुक्तिगमन, महावीर का तेजोवेश्या से उपसर्ग आदि ।
इस प्रकार अन्य भी कई भेद रेखाएँ हैं, जिन्हें दिगम्बर सम्प्रदाय नहीं मानता।
श्वेताम्बर भगवान की राज्यावस्था की उपासना करते हैं तो दिगम्वर उनकी सर्व-परिग्रह रहित वैराग्यावस्था की । श्वेताम्बरों का मानना है कि भगवान ऋषभ और महावीर ने सचेलक (वस्त्र सहित) और अचेलक (वस्त्र रहित) दोनों मुनि धर्मों का उपदेश दिया था। दिगम्बर यह बात नहीं मानते । उनके शास्त्रों में तो चौवीस तीर्थंकरों ने अचेलक धर्म का ही उपदेश दिया है, ऐसा वर्णन है।
दिगम्बर साधु अपने साथ केवल मोरपंख की एक पीछी ( जीवादि को दूर करने के लिए ) और एक कमण्डलु ( मल-मूत्रादि की वाधा दूर करने के लिए)
१. तेनेन्द्रभूति गणिना तदिव्यवचो यत्रुध्यत तत्त्वेन ।
ग्रन्यो पूर्वनाम्ना प्रतिरचितो युगपदपराहणे ॥६६।।
-अतावतार।