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. जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता
- सम्प्रदाय भेद और उसके कारण :
- प्रत्येक धर्म में सम्प्रदाय, उप-सम्प्रदाय, संघ, पंथ आदि का प्रस्थापन होता रहा है । जैन धर्म भी इसका अपवाद नहीं। इस धर्म में भी दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी, तारनपंथी आदि अनेक सम्प्रदाय हैं। जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय दो हैं- श्वेताम्बर और दिगम्बर । इनमें एक साधारण-सी सैद्धांतिक वात परं मतभेद हुआ था जो आगे चलकर खाई बन गया। श्वेताम्बर मान्यता :
भगवान महावीर के उपदेशों का व्यवस्थित संकलन उनके प्रधान शिष्य इन्द्रभूति और सुधर्मा नामक गणधरों ने किया । यह संकलन आगे चलकर "द्वादशांगी" कहलाया अर्थात् भगवान महावीर की उपदेशवाणी "बारह अंगों" में विभक्त की गई।
"महावीर निर्वाण की द्वितीय शताब्दी में ( चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में ) मगध में एक द्वादशवर्षीय भयंकर अकाल पड़ा। अकाल से पीड़ित हो तथा भविष्य में अनेक विघ्नों की आशंका से आचार्य भद्रबाहु अपने बहुत से शिष्यों सहित कर्णाटक देश में चले गये । जो लोग मगध में रह गये उनके नेता (गणधर भद्रबाहु के शिष्य) स्थूलभद्र हुए।' - - अकाल की भयंकरता में आचार्य स्थूलभद्र को "द्वादशांगी" के लुप्त हो जाने की आशंका हुई। उन्होंने पाटिलपुत्र में श्रमण संघ की एक सभा आमन्त्रित की। इसमें सर्वसम्मति से भगवान महावीर की वाणी का ग्यारह अंगों में संकलन किया। वारहवें दृष्टिवाद अंग के चौदह भागों में से अतिम चार भाग (पूर्व) जो शिष्यों को विस्मृत हो गये थे, संकलित न हो सके ।
अकाल समाप्त होने पर जब-भद्रबाहु अपने संघ सहित मगध लौटे तो उन्होंने स्थूलभद्र के संघ में अपने संघ से काफी अंतर पाया । स्थूलभद्र के संघ के साधु कटिवस्त्र, दण्ड तथा चादर आदि का उपयोग करने लगे थे। भोजनादि में भी पर्याप्त अंतर आ गया था। इस विपरीतता को देखकर आचार्य भद्रबाहु ने स्थूलभद्र को समझाया कि अकाल और देशकाल की आपत्ति में अपवाद वेष का विधान भले हुमा, अब आप अपने संघ को पुनः दिगम्बर रूप दीजिए । पर वे न माने, आपसी तनातनी ने निकटता की अपेक्षा दूरी को ही बढ़ावा दिया । परिणाम यह हुआ कि दिगम्बर • और श्वेताम्बर दो सम्प्रदाय बन गये ।
१. प्रेमी भभिनन्दन ग्रन्यः १० हजारीप्रसाद द्विवेदी पृ० ४४८