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जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता.
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ढूढे वन मांहिं ।" १ कहा है तो कभी "शरीर सरोवर भीतर आछे कमल अनूप । " २ बताया है । इसी तरह महात्मा आनन्दघन ने परभाव और बाहर भटकने की मानव प्रवृत्ति को मूढ़ कर्म कह कर घट में बसे अनन्त परमात्मरूप का ध्यान करने को कहा है ।३ ज्ञानन ंद ने " अंतर दृष्टि निहालो " ४ कहा कर तथा विनयविजय ने "सुधा सरोवर है या घर में " ५ कह कर इसी बात की पुष्टि की है ।
इन कवियों ने इस अनन्त तत्व को अनेक नामों से पुकारा है । उसे राम, शिव, विष्णु, केशव, ब्रह्मा आदि कहा है, परन्तु दोनों को अवतार वाद में विश्वास नहीं | कबीर ने अपने आराध्य का स्पष्टीकरण करते हुए कहा कि उनका “अल्लाह" अलख निरंजन देव है; जो हर प्रकार की सेवा से परे । उनका "विष्णु" वह है, जो सर्व व्यापक है, "कृष्ण" वह है जिसने संसार का निर्माण वह है जो ब्रहमाण्ड में व्याप्त है, "राम" वह है जो युगों से वह है जो दसों द्वारों को खोल देता की रक्षा करता है, "करीम" वह है ज्ञान गम्य है, "महादेव" वह है जो
किया है, "गोविन्द"
रम रहा है, "खुदा" है, "रब" वह है जो चौरासी लाख योनियों जो सभी कार्य करता है, मन की बात जानता है
"गोरख" वह है जो
।
इस प्रकार कबीर के महात्मा आनन्दघन के
आराध्य के नाम अनन्त हैं और उसकी महिमा अपार है ।६ ब्रह ्मम की व्याख्या भी लगभग इन्हीं शब्दों में हुई है ।७ कभी ये पौराणिक शब्दावली में ब्रजनाथ के समक्ष अपनी दीनता व्यक्त करते हैं, ८ तो कभी वंशीवाले से दिल लगाने की बात कहते हैं । किन्तु इससे अवतारवाद का समर्थन नहीं होता । वस्तुतः उनका ब्रह ्मम तो एक ही है, भले उसे राम, रहमान, कृष्ण, महादेव, पार्श्वनाथ या
१. श्यामसुन्दर दास सम्पादित, कबीर ग्रंथावली, पृ० ८१ ।
२. रामकुमार वर्मा, संत कबीर, पृ० १६१ |
३. वहिरातम मूढा जग जेता, माया के फंद रहेता । घट अंतर परमातम घ्यावे, दुर्लभ प्राणी तेना ॥" --आनन्दघन पद संग्रह, पद २७, पृ०७४ । ४. भजन संग्रह, धर्मामृत, पद २८, पृ० ३१ ।
५. वही, पद ३२, पृ० ३५ | ६. श्यामसुन्दर दास संपा० कबीर ७. राम कहो रहमान कहो कोउ,
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८. वही, पद ६३, पृ० २७१ । ६. वही, पद ५३, पृ० १५७ ॥
ग्रंथावली, पद ३२७, पृ० १६६ ।
'आनन्दघन पद संग्रह, पद ६७, पृ० २८४ ।