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________________ जैन- गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता ३१३ आदान-प्रदान की प्रक्रिया से कुछ नवीन काव्यरूपों की परम्परा की भी आरम्भ हुआ । गजल इसी प्रकार का साहित्य प्रकार है "दुवावेत " भी फारसी का एक साहित्य प्रकार है जो १७वीं शती के कवियों ने विशेष अपनाया है । ऐसी रचनाओं में हिन्दी की खंड़ी बोली का अच्छा प्रयोग हुआ है । राजस्थानी छन्द ग्रन्थ 'रघुनाथ रूपक' में ७१ प्रकार के डिंगल गीत उनके लक्षण तथा अंत में 'दुवावैत' के भी दो प्रकारों का उल्लेख किया है । यह कोई छन्द नहीं, मात्र पदवन्ध रचना है, जिसमें अनुप्रास मिलाया जाता है। कच्छ-भुज ब्रजभांपा पाठशाला के आचार्य कुवरकुशल रचित 'महाराओ लखपति दुवावैत' रचना इस कोटि में आती है, जिसमें महाराव लखपति का विस्तार से बहुत सुन्दर वर्णन मिलता है । “नाममाला" रचनाओं में प्रायः तीर्थकरों के विशेषणों या साधुओं के नामों की मालां गू ंथी जाती है। परन्तु आलोच्य युगीन जैन- गुर्जर कवियों की इस प्रकार की कोई रचना प्राप्त नहीं हो पाई है । कच्छ भुंच्छ व्रजभाषा पाठशाला के आचार्य कनककुशल और कुंवरकुशल की तीन "नाममाला" नामक रचनाओं का उल्लेख हुआ है, जो इस प्रकार है कनककुशल भट्टार्क कुंअर कुशल : श्रीमद् देवचन्द जिनह कुछ " दोधक" रचनाएं भी मिलती हैं । इन वर्णिक छन्दों में समवृत का एक भेद है । भरत के लक्षण के अनुसार तीन भगणों और दो गुरुओं के योग से यह वृत्त बनता है 1१ कुछ जैन गुर्जर कवियों ने इसे दोहे के अर्थ में प्रयुक्त किया है । कही कहीं तो दोहे की ११ - १३ मात्राओं का भी पूर्ण निर्वाह नहीं हुआ है । " दोधक" नामक प्राप्त रचनाएं इस प्रकार हैं लखपति मंजरी नाममाला पारसति नाममाला तथा लखपति मंजरी नाममाला : 0 साधु समस्या दुवादश दोघक दोधक छत्तीसी २ तथा पार्श्वनाथ दोधक छत्तीसी ३ इनके अनन्तर कुछ आदि की संज्ञा वाली भी प्राप्त हैं । रचनाएं पट्टावली-गुर्वावली, जकड़ी, हियाली समस्या १. हिन्दी साहित्य कोप, पृ० ३४२ २. जिन ३. वही । ग्रंथावली, संपा० अगरचन्द नाहटा, पृ० ११७, ३०२ ।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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