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आलोचना-खंड
हिन्दी के कवि नरहरिदास तथा कुलपति मिश्र का भी अनेक 'सम्वाद' 'वादु' सहायक रचनाएं मिलती हैं। ऐसे कवियों की अधिकांश रचनाएं 'अकवर दरवार के हिन्दी कवि' में छप चुकी हैं। (७) विविध विषयों की दृष्टि से
'प्रवहण' या 'वाहण' नामक रचनाओं में जहाज के रूपक का वर्णन होता है । मेघराज रचित ऐमी एक ही रचना 'संयम प्रवहण' या 'राजचन्द्र प्रवहण' प्राप्त हैं।
'दीपिका' संजक रचना भी एक ही प्राप्त है। कनककुशल भट्टारक रचित 'मुन्दर शृंगार की रस दीपिका' शृगार-कृति अत्यंत लोकप्रिय है।
'चन्द्राउला' चन्द्रावल का अपभ्रंश रूप लगता है। चन्द्रावल गेय गीतों के कथा-रूप की संज्ञा है। राजस्थान तथा बुन्देलखण्ड में 'चन्द्रावल' गीत कथा प्रचलित है जो श्रावण में झूले पर गाई जाती है। जैन कवियों ने भी गेय गीत रूप में ही आचार्यों एवं तीर्थंकरों के 'चन्द्राउला' रचे हैं। ऐसी कृतियों में समयसुन्दर रचित 'श्री जिनचन्द्रसूरि चन्द्राउला' तथा जयवंतसूरि कृत 'सीमन्धर चन्द्राउला' उल्लेखनीय रचनाएं हैं।
__ चुनड़ी, सूखड़ी, आंतरा, ध्र पद आदि विविध संज्ञाएं भी इन भावुक कवियों ने अपनी धर्मोपदेश एवं भक्ति संबंधी रचनाओं के लिए प्रयुक्त की है। चूनड़ी में तीर्थकरों की चरित्ररूपी चुनड़ी को धारण करने के संक्षिप्त वर्णन हैं। उस चारित्ररूपी चुनड़ी में गुणों का रंग, जिनदाणी का रस, तप रूपी तेज आदि की मुन्दर रूपक योजना निरूपित की गई है। ऐसे चुनड़ी गीतों में ब्रह्मजय सागर की 'चुनड़ी गीत' रचना साधुकीर्ति की 'चुनड़ी' तथा समयसुन्दर की 'चरित्र चुनड़ी' आदि महत्वपूर्ण हैं।
___ "सूखड़ी' नामक रचनाओं में विविध व्यंजनों का उल्लेख है। इन कवियों ने भक्ति वर्णन के साथ अपने पाकशास्त्र के ज्ञान का प्रदर्शन भी किया है । गांतिनाथ के जन्म के अवसर पर कितने प्रकार की मिठाइयां बनी थीं- यह बताने के लिए अभयचन्द ने 'सूखड़ी' की रचना की।
'आंतरा' रचनाओं में २४ तीर्थकरों के अवतरण के समय का वर्णन होता है। 'वीरचन्द्र की जिन आंतरा' रचना में प्रत्येक तीर्थकर के होने में जो समय लगता है- उसका वर्णन किया गया है। दुवावेत :
__मुसलमानों के सम्पर्क से करीब १४वीं शताब्दी से प्रान्तीय भाषाओं की रचनाओं में अरबी-फारसी के शब्दों का भी प्रचुर प्रयोग मिलने लगता है। इस