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जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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दृष्टि से वार्ताएं लिखी हैं । कथा और वार्ता शब्द भी कहीं कहीं एकार्थवाची ही रहे हैं । 'कथा' संज क रचनाओं में भी ऐसी उपदेशमूलक वार्ताओं की भरमार है । वार्ता नामक, जिनहर्ष प्रणीत एक रचना 'नन्द बहोत्तरी-विरोचन महेता वार्ता' प्राप्त है। ऐसी पद्यात्मक लोकवार्ताओं में लोकजीवन की जीवन्त झांकी स्पष्टतः देखी जा सकती है। संवाद :
कुछ जैन कवियों ने विरोधी वस्तुओं का परस्पर संवाद कराया है । जिनमें एक को वादी और दूसरे को प्रतिवादी का रूप देकर वस्तु विशेष के महत्व या दोप का सुन्दर वर्णन, मण्डन-भण्डन की शैली में हुआ है समन्यवादी इन कवियों ने अन्त में अपने इन कल्पित पात्रों में मेल भी करा दिया है । ऐसी 'विवाद' अथवा 'संवाद' संजक रचनाएं छोटी हैं पर काव्य चमत्कार एवं कवि की वाक्-प्रतिभा-दर्शन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। . साहित्य में संवाद या विवाद की परम्परा अति प्राचीन रही है। संस्कृत के 'सम्वाद सुन्दर' नथ में ऐसे नौ संवोद आये है । १६वीं शताब्दी से संस्कृत के साथ हिन्दी, गुजराती एवं राजस्थानी में भी इस प्रकार की रचनाएं मिलने लगती है। कवि समयसुन्दर ने अपने संस्कृत ग्रंथ 'कथा कोप' में तीन सम्वाद दिये है। इन्होंने एक गुजराती मिश्रित हिन्दी में :दानादि संवाद शतक' नामक रचना भी लिखी है ।१ इसमें जैन धर्म के चार प्रकार- दान, शील, तप और भाव का संवाद बड़ी ही सुन्दर शैली में प्रस्तुत किया है। ये चारों अपनी अपनी महत्ता गाते है और अन्यो को हेय बताने का प्रयत्न करते है अंत में महावीर समझाते है-- आत्मप्रशंसा ठीक नहीं। चारों का अपना अपना महत्व है और भगवान चारों की महिमा गाते हैं।
इस प्रकार के अन्य सम्वाद ग्रंथ निम्नानुसार हैविनय विजय : पंच समवाय संवाद श्रीसार : मोती कपासिया सम्वाद जिनहर्प
रावण मंदोदरी संवाद यशोविजयजी समुद्र चाहणा संवाद लक्ष्मीवल्लभ : भरत वाहुबली संवाद सुमतिकीति : जिह्वादंत विवाद
१. समयसुन्दर कृत कुसुमांजलि, संपा० अगरचन्द नाहटा, पृ० ५८३ ।