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आलोचना-खंड
को गन्थिकः कथयति तद् गोविन्द वदाख्यानम्' इस दृष्टि से रामायण, महाभारत आदि महाकाव्यों में दृष्टांत रूप या उपदेशार्थ आई हरिश्चन्द्र नल आदि की प्रासंगिक कथाएं उपाख्यान हैं । और इन्हीं उपाख्यानों को गाकर साभिनय प्रस्तुत किया जाता है तो ये आख्यान कहे जाते हैं । साहित्य दर्पण कार ने इसकी परिभाषा करते हुए बताया है—'आख्यानं पूर्ववृत्तोतिः' अर्थात् पूर्व घटित वृत्त का कथन आख्यान है। प्रायः यह शब्द प्राचीन कथानक या वृत्तान्त के लिए ही प्रयुक्त हुआ है। इसका व्यापक अर्थ कहानी, कथा आख्यायिका आदि हो सकता है पर यह अपने सीमित अर्थ में ऐतिहासिक कथानक या पूर्ववृत्त-कथन के अर्थ को ही अधिक व्यक्त करता है । जैन गूर्जर कवियों द्वारा प्रणीत ऐसे दो आख्यान प्राप्त हैं
चन्द्रकीति : जयकुमार आख्यान वादीचन्द्र : श्रीपाल आख्यान
कथा और चरित्र प्रायः एकार्थवाची हैं। आचार्य शुक्ल जी ने इतिवृत्तात्मक प्रवन्ध काव्यों को कथा कहा है और उसे काव्य से भिन्न माना है ।१ वस्तुतः कथा काव्य श्रव्य प्रवन्ध है जिसमें इतिवृत्तात्मकता के साथ रसात्मकता एवं अलंकरण का भी निर्वाह होता है। इनमें लोक विश्वास तथा कथानक रूढ़ियों की भरमार होती है । अतिशयोक्तिपूर्ण, अविश्वसनीय, अमानवीय चमत्कारपूर्ण चित्रण आदि की वहुलता से बौद्धिक ऊंचाई एवं भावभूमि की व्यापकता नहीं आ पाई है फिर भी उप'देश तथा धर्म भावना पर आधारित इन कृतियों का अपना महत्व है, जिनमें रसात्मकता, भावव्यंजना और अलंकृति के भी दर्शन अवश्य होते हैं ।
__ आलोच्य युगीन जैन गूर्जर कवियों द्वारा रचित 'कथा' संजक रचनाएं इस प्रकार हैं
देवेन्द्रकीति शिष्य : आदित्यवार कथा ब्रह्म रायमल : हनुमन्त कथा तथा भविप्यदत कथा भट्टारक महीचन्द्र : आदित्यव्रत कथा मालदेव : विक्रम चरित्र पंच दंड कथा वादीचन्द्र : अम्बिका कथा वीरचन्द्र : चित्त निरोध कथा
'वार्ता' भी लोकशिक्षण के प्रचार की प्राचीन परंपरा है । वेद-काल से इस प्रकार की शिक्षण परम्परा अवाधित चली आई है। जैन कवियों ने भी धर्म एवं उपदेश की
१. जायसी ग्रंथावली, भूमिका, पृ० ७० ।