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________________ जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता ३०६ . मालदेव : भोज प्रबन्ध लक्ष्मीवल्लभ : कालज्ञान प्रवन्ध समयसुन्दर : केशी प्रदेशी प्रवन्ध प्रवन्ध काव्य का ही एक विशेष रूप या प्रकार "चरित" काव्य है। इसमें प्रबन्ध काव्य, कथाकाव्य तथा पुराण तीनों के तत्वों का समावेश होता है। यही कारण है कि कभी कभी ऐसे चरित काव्यों के लिए 'चरित', 'कथा' या 'पुराण' संना व्यवहृत हुई है । इस सब का सम्बन्ध मूल तो प्रवन्ध काव्य से ही है । चरितकाव्य में जीवन चरित की शैली होती है । उसमें ऐतिहासिक ढंग से नायक के पूर्वज, माता-पिता, वंश, पूर्वभवों का वृत्तांत तथा देश-नगरादि का वर्णन होता है। ये कथात्मक अधिक तथा वर्णनात्मक कम होते हैं । व्यर्थ के वस्तु-वर्णन या प्रकृति-वर्णन में बहुत कम उलझने का प्रयत्न होता है। इनमें प्रायः प्रेम, वीरता, धर्म या वैराग्य भावना का समन्वय स्पष्ट दिखाई पड़ता है। प्रेमनिरूपण, नायक-नायिकाओं के मार्ग ' की बाधाएं, अन्त में मिलन या किसी प्रेरणा या उपदेश से विरक्त साधु बनने आदि के प्रसंग सामान्य हैं । 'चरित्र' के रूप में दो रचनाएं प्राप्त है "ब्रह्मरायमल : प्रद्युम्न चरित्र विनय समुद्र : पद्म चरित्र आख्यान, कथा; वार्ता आदि ऐतिहासिक या पौराणिक कथा के लिए आख्यान' संजा का प्रयोग हुआ है । इसमें मुख्यतः पौराणिक प्रसंगों का साभिनय कथा गान होता है । रास से इसी साम्य को लेकर कुछ विद्वान जैन रासो को भी 'आख्यान' की कोटि में रखते हैं ।१ १७वीं एवं १८वीं शती के रास और आख्यान को कथा-काव्य की ही कोटि में रख सकते हैं। धर्मप्रचार के हेतु ही इनका उद्भव होता है। दोनों का संबंध जनसमुदाय से है। अन्तर इतना है कि रास अनेक, साथ-मिलकर गाते हैं जबकि आख्यान एक ही व्यक्ति गाता है। श्री के० का० शास्त्री आख्यान का मूल रास साहित्य में बताते हैं ।२ वस्तु भले एक हो फिर भी निरूपण शैली की दृष्टि से ये दोनों दो विभिन्न काव्य-रूप हैं। आख्यान-परम्परा का विकास जैनेतर कवियों के हाथों खूब हुआ। कुछ जैन कवियों ने भी आख्यानों की रचना की है। श्री हेमचन्द्राचार्य ने आख्यान और उपाख्यान का भेद बताते हुए कहा है, 'प्रबंधमध्ये परबोधनार्थ नलाधुपारख्यान भिवोपारख्यानमभिनयन पठन् गायन यदे १. शांतिलाल साराभाई ओझा, साहित्य प्रकार, प्रेमानन्द अंक, पृ० २२७ । २. आपणा कविओ, पृ० ३८१ । - -
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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