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बालोचना-खंड
'युग प्रधान श्री जिनचन्द्र सूर्यष्टकम् १ तथा 'श्री जिनसिंहमूरि सवैयाष्टक'२ उब्लेन्यनीय हैं।
वीसी तथा चौवीसी संजक रचनाओं में वीस विहरमानों के स्वप्नों तथा चौवीस तीर्थंकरों की स्तुतियां संगृहीत हैं। इस प्रकार की कृतियां जैन परम्परा की विशेपता कही जा सकती है। समसुन्दर, जिनहर्प, जिनराजसरि, विनयचन्द्र, कल्याणसागरसूरि, केशरकुशल; न्यायसागर आदि कवियों ने 'वीसी' नामक रचनाओं का सर्जन किया है।
___ अधिकांश प्रमुख कवियों ने चौवीसी संज्ञक कृतियों का निर्माण भी किया है । चौवीसी संज्ञक कृतिकारों में आनन्दवर्धन, आनन्दघन; जदयराज, ऋषमसागर, गुणविलास, जिनहर्ष, धर्मवर्धन, न्यायसागर, लक्ष्मीवल्लभ, लावण्यविजय गणि, वृद्धिविजय, समयसुन्दर, हंसरत्न आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। इनमें समयसुन्दर, जिनहर्ष आदि कवियों ने तो एक से अधिक चौवीसी रचनाओं का निर्माण किया है। इस प्रकार करीब १५ चौवीसियों का उल्लेख प्राप्त है।
____बत्तीसी संज्ञक रचनाओं में कहीं ३२ तथा किसी में कुछ अधिक पद्य भी हैं। भक्ति, उपदेश, और अध्यात्म से सम्बन्धित कुल चार बत्तीसियों का उल्लेख प्रस्तुत प्रबन्ध में हुआ है, जो निम्नानुसार हैं
वालचन्द : वालचन्द बत्तीसी। मानमुनि : संयोग बत्तीसी।। लक्ष्मीवल्लभ : उपदेश बत्तीसी तथा चेतन बत्तीसी ।
कवि समयसुन्दर रचित 'छत्तीसी' संज्ञक कुल ७ रचनाएं प्राप्त हैं। धर्म, उपदेश, भक्ति, अध्यात्म आदि के अतिरिक्त इनमें तत्कालीन समाज का दर्शन तथा ऐतिहासिक वृत्त भी प्रसंगतः आ गये हैं । ऐसी रचनाओं में 'सत्यासिया दुष्काल वर्णन छत्तीसी' विशेष महत्व की है। इनकी तथा अन्य कवियों की प्राप्त छत्तीसियां इस प्रकार हैसमयसुन्दर
सत्यासिया दुष्काल वर्णन छत्तीसी, प्रस्ताव सर्वया छत्तीसी, क्षमा छत्तीसी, कर्म छत्तीसी, पुण्य छत्तीसी,
संतोष छत्तीसी तथा आलोचणा छत्तीसी । जिनहर्ष
उपदेश छत्तीसी तथा दोधक छत्तीसी । १. वही, पृ० २६१-६२.। २. वही, पृ० ३६० ।