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जैन गूर्जर कवियों की हिन्दी कविता
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कवियों में प्रायः सभी ने इस प्रकार की स्तुति परक मुक्तक रचनाएं लिखी हैं । ऐसे प्रमुख स्तुतिकार एवं गीतकार कवियों में समयसुन्दर, कनककीर्ति, शुभचन्द्र, हेमविजय, मेघराज, सुमतिसागर, आनन्दवर्द्धन, जिनहर्ष, विनयचन्द्र, ज्ञानविमलसूरि कुमुदचन्द्र, जिनराजसूरि, ब्रह्मजयसागर भट्टारक सकलभूषण, भट्टारक रत्नचन्द्र आदि विशेष उल्लेखनीय हैं । इनके असंख्य स्तुतिपरक गीत प्राप्त हैं । गेय पदों की विज्ञप्ति गीत है ।
जैन साधुओं के गुण वर्णन तथा उनकी प्रेरणा- भावसे अभिभूत गीत रचनाओं की संज्ञा 'स्वाध्याय' या 'सज्झाय' है । 'सज्झाय' संज्ञक रचनाओं में कनककीति की 'भरतचक्री सज्झाय' यशोविजय जी की 'अमृतवेलनी नानी सज्झाय' तथा 'मोटी सृज्झाय' विनयचंद्र' को 'ग्यारह अंग सज्झाय' ज्ञानविमलसूरि की 'सज्झाय' आदि उल्लेखनीय कृतियां है |
विनयप्रधान रचनाओं को विनती कहा कुमुदचन्द्र की विनतियां, तथा सुमतिकीर्ति की की रचनाओं में आती हैं ।
गया है । कनककीति की 'विनती' 'जिनवर स्वामी विनती' इसी प्रकार
आध्यात्मिक गीतों की संज्ञा पद है । ये पद विभिन्न राग-रागनियों में रचित है | महात्मा आनंदघन, यशोविजय, विनयविजय, ज्ञानानन्द, भट्टारक शुभचन्द्र, रत्नकीर्ति, कुमुदचन्द, समयसुन्दर, धर्मवर्द्धन आदि का पद साहित्य अत्यन्त समृद्ध एवं लोकप्रिय रहा है । आलोच्य युगीन कवियों में अधिकांश कवियों ने पद गीत तथा स्तुति परक रचनाओं के निर्माण में बड़ी रुचि दिखलाई हैं । इन मुक्तक रचनाओं में इन कवियों की भक्ति, उपदेश, धर्म तथा वैराग्य विषयक सुन्दर भावाभिव्यक्ति के दर्शन होते हैं । इन कवियों की कविता की श्री समृद्धि का आधार मूलतः यही रचनायें हैं
(४) संख्या की दृष्टि से :
अष्टक, वीसी, चोवीसी, बत्तीसी, छत्तीसी, बावनी, बहोत्तरी, शतक आदि रचनाओं का नामाभिधान पद्यों की संख्या के आधार पर हुआ है । इनमें ज्ञान, भक्ति, उपदेश, योग, ईश्वर, प्रेम, स्तुति स्तवन, उलट वासियां, आध्यात्मिक रूपक आदि से सम्बन्धित विविध भावों एवं मनःस्थितियों का निरूपण है ।
अष्टक और अष्टपदी रचनाएं आठ पद्यों की सूचक हैं | यशोविजय जी द्वारा प्रणीत 'आनंदघनं अष्टपदी' विशेष प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है । समयसुन्दर ने भी इस प्रकार की अच्छी रचनाएं की है। उनकी रचनाओं में 'श्री गोतमस्वामी अष्टक' १
१. समयसुन्दर कृत कुसुमांजलि, संपा० अगरचन्द नाहटा, पृ० ३४३ ॥