SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०० आलोचना-खंड पूजाएं लोकभाषा में भी रची जाने लगी। जैनों में अष्ठ प्रकार की पूजा का भी बड़ा महत्व रहा है । जन्माभिषेक विधि, स्नात्र विधि आदि इन्हीं पूजा विधियों में सम्मिलित हैं। आलोच्य युगीन जन-गूर्जर कवियों में इस प्रकार की 'पूजा' संज क रचना करने वालों में साधुकीर्ति, ब्रह्मजयसागर, जिनहर्प आदि कवि उल्लेखनीय है । साधकीति की 'सतर भेदी पूजा' इस प्रकार की रचनाओं में महत्वपूर्ण कृति है। कवि धर्मवर्द्धन की 'सतरह भेदी पूजा स्तवन' कृति में भी सत्रह प्रकार की पूजाविधि का विवरण है। ___ सलोक : इसका मूल संस्कृत शब्द 'श्लोक' है । प्राकृत में 'सलोका' शब्दविवाह मंडप में लग्नविधि के समय वरकन्या के उत्तर-प्रत्युत्तर के रूप में कही गई काव्यात्मक पंक्तियों के अर्थ में प्रयुक्त है। १ गुजरात के उत्तरी भाग तथा राजस्थान में भी विवाह प्रसंग में वरातियों एवं कन्यापक्ष के लोगों के बीच सिलोके कहे जाने की प्रथा रही है। धीरे धीरे यह प्रथा मन्दिर में देवी-देवताओं के वर्णन रूप में भी प्रयुक्त होने लगी। कवि जिनहर्ष प्रणीत 'आदिनाथ सलोको'२ ऐसी ही रचनाओं का प्रतिनिधित्व करती है । इन कवियों द्वारा रचित इस प्रकार की अन्य रचनाएं प्राप्त नहीं होती। इस प्रकार के गुजराती तथा राजस्थानी भाषा में रचित 'सलोको' का विस्तृत विवरण श्री अगरचन्द नाहटा तथा प्रो० हीरालाल कापड़िया ने दिया है ।३ इसमें जिनहर्प द्वारा रचे गये एक और सलोक 'नेमिनाथ सलोको' का भी उल्लेख हुआ है। इनमें देवी देवताओं एवं वीरों के गुण वर्णन की ही प्रधानता होती है, काव्य-शिल्प अथवा छन्दों का इतना विचार नहीं किया जाता। वंदना, स्तुति, स्तवन, स्तोत्र, गीत, सज्झाय, विनती पद, नाम माला आदि इन विभिन्न संज्ञापरक कृतियों में तीर्थकरों तथा महापुरुषों के गुणों का वर्णन मुख्य है । साथ ही उपदेश तथा धर्मप्रचार की भावना भी स्पष्टतः परिलक्षित होती है। वंदना स्तुति, स्तवन, स्तोत्र तथा गीत संज्ञक रचनाएं स्तुति प्रधान है। ऐसी अधिकांश स्तुतिपरक रचनाएं चार पद्यों वाली हैं । आलोच्य युगीन जैन गूर्जर १. गुजराती साहित्यनां स्वरूपो, प्रो० मं० २० मजूमदार, पृ० १३२ । २. जिनहर्प थावली, संपा० अगरचन्द नाहटा, पृ० १६६ । ३. 'जैन सत्य प्रकाश' के अंक श्री नाहटाजी तथा कापड़िया के लेख ।
SR No.010190
Book TitleGurjar Jain Kavio ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHariprasad G Shastri
PublisherJawahar Pustakalaya Mathura
Publication Year1976
Total Pages353
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy